उविच्च भोगा पुरिसं चयन्ति,
दुमं जहा खीणफलं व पक्खी
दुमं जहा खीणफलं व पक्खी
जैसे क्षीणफल वृक्ष को पक्षी छोड़ देते हैं, वैसे भोग क्षीणपुण्य पुरुष को छोड देते हैं
जैसे क्षीणफल वृक्ष को पक्षी छोड़ देते हैं, वैसे भोग क्षीणपुण्य पुरुष को छोड देते हैं
इच्छा आकाश के समान अनन्त होती है
इसलिए कि हम कुछ चाहते हैं|
इसका अर्थ?
अर्थ यही कि इच्छा स्वयं दुःख है! Continue reading “अनन्त इच्छा” »
अनन्त संसार में मूढ बहुशः लुप्त (नष्ट) होते हैं
प्राणियों से मैत्री करो
कृत कर्मों का (फल भोगे बिना) छुटकारा नहीं होता
जिसमें मोह नहीं होता, उसका दुःख नष्ट हो जाता है और जिसमें तृष्णा नहीं होती उसका मोह नष्ट हो जाता है
कषाय अग्नि है तो श्रुत, शील और तप को जल कहा गया है
श्रद्धा अत्यन्त दुर्लभ है
हे गौतम! तू क्षण भर के लिए भी प्रमाद मत कर
जिसमें लोभ नहीं होता, उसकी तृष्णा नष्ट हो जाती है और जो अकिंचन है, उसका लोभ नष्ट हो जाता है