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मोक्ष और निर्वाण

मोक्ष और निर्वाण

अगुणिस्स नत्थि मोक्खो,
नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं

गुणोंके अभाव में मोक्ष नहीं होता और मोक्षके अभाव में निर्वाण नहीं होता

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बहुत न बोलें

बहुत न बोलें

बहुयं मा य आलवे

बहुत अधिक न बोले

कुछ लोग बहुत अधिक बोला करते हैं| वे दिन भर कुछ न कुछ बोलते ही रहते हैं| मौन रहना उन्हें नहीं सुहाता| बड़ी बुरी आदत है यह| Continue reading “बहुत न बोलें” »

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भोगों का त्याग

भोगों का त्याग

उविच्च भोगा पुरिसं चयन्ति,
दुमं जहा खीणफलं व पक्खी

जैसे क्षीणफल वृक्ष को पक्षी छोड़ देते हैं, वैसे भोग क्षीणपुण्य पुरुष को छोड देते हैं

जब तक वृक्ष पर मधुर पके हुए फल होते हैं, तब तक दूर-दूर से पक्षी उसकी शाखाओं पर आ कर बैठते हैं और फलों का मन-चाहा उपभोग करते हैं; परन्तु जब सारे फल समाप्त हो जाते हैं और ऋतु बदल जाने से नये फल उत्प होने की सम्भावना नहीं रहती, तब सारे पक्षी उसे छोड़कर अन्यत्र चले जाते हैं| Continue reading “भोगों का त्याग” »

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अनन्त इच्छा

अनन्त इच्छा

इच्छा हु आगाससमा अणंतया

इच्छा आकाश के समान अनन्त होती है

हम दुःखी क्यों हैं|

इसलिए कि हम कुछ चाहते हैं|

इसका अर्थ?

अर्थ यही कि इच्छा स्वयं दुःख है! Continue reading “अनन्त इच्छा” »

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मोह और दुःख

मोह और दुःख

लुप्पंति बहुसो मूढा, संसारम्मि अणंतए

अनन्त संसार में मूढ बहुशः लुप्त (नष्ट) होते हैं

‘मूढ़’ का अर्थ है – मोहग्रस्त| जिनके मन में मोह भरा होता है, वे व्यक्ति इस अनन्त संसार में अनेक प्रकार से दुखी होते है| Continue reading “मोह और दुःख” »

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मैत्री करो

मैत्री करो

मेत्तिं भूएसु कप्पए

प्राणियों से मैत्री करो

क्रोध, मान, माया और लोभ – ये चार कषाय आत्मा को उद्विग्न करते हैं – अशान्त बनाते हैं; इतना ही नहीं, बल्कि जिनके प्रति उनका प्रयोग किया जाता है, उन्हें भी उद्विग्न एवं अशान्त बना देते हैं| अपने कषाय के प्रदर्शन से उद्विग्न बने हुए दूसरे लोग हमारे वैरी बन जाते हैं और हम से वैर करते हैं – बदले में हम भी उनसे वैर करते है और इस प्रकार वैर प्रबल से प्रबलतर होता जाता है| Continue reading “मैत्री करो” »

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अन्यथा मुक्ति नहीं

अन्यथा मुक्ति नहीं

कडाण कम्माण न अत्थि मोक्खो

कृत कर्मों का (फल भोगे बिना) छुटकारा नहीं होता

यदि दीपक की लौ पर कोई अपनी उँगली रखे तो क्या होगा ? उष्णता का अनुभव होगा और वह जलने लगेगी| जलन का अनुभव होगा और वह जलने लगेगी| जलन का अनुभव होने पर यदि उँगली दीपक की लौ से हटा भी ली जाये तो भी उसकी वेदना कुछ दिनों तक होती रहेगी| Continue reading “अन्यथा मुक्ति नहीं” »

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दुःख और तृष्णा

दुःख और तृष्णा

दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो,
मोहो हओ जस्स न होइ तण्हा

जिसमें मोह नहीं होता, उसका दुःख नष्ट हो जाता है और जिसमें तृष्णा नहीं होती उसका मोह नष्ट हो जाता है

तृष्णा बड़े-बड़े धैर्यशालियों के भी छक्के छुड़ा देती है – आँख वालों को भी अन्धा बना देती है, अन्धेरी रात में आँखवालों को जिस प्रकार पास में पड़ी हुई वस्तु भी दिखाई नहीं देती, उसी प्रकार तृष्णाग्रस्त व्यक्ति को अपने पास रही हुई सम्पत्ति भी दिखाई नहीं देती और वह अधिक से अधिक सम्पत्ति पाने की कोशिश में लगा रहता है – जीवन भर घानी के बैल की तरह परिश्रम करता रहता है| Continue reading “दुःख और तृष्णा” »

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श्रुतशील-तप

श्रुतशील तप

कसाया अग्गिणो वुत्ता,
सुयसीलतवो जलं

कषाय अग्नि है तो श्रुत, शील और तप को जल कहा गया है

क्रोध, मान, माया और लोभ – ये चार कषाय हैं| अग्नि की तरह ये आत्मा को जलाते रहते हैं – अशान्त और क्षुब्ध बनाते रहते हैं| इनसे कैसे बचा जाये ? इसका उपाय इस सूक्ति में बताया गया है| Continue reading “श्रुतशील-तप” »

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दुर्लभ श्रद्धा

दुर्लभ श्रद्धा

श्रद्धा परमदुल्लहा

श्रद्धा अत्यन्त दुर्लभ है

धर्म पर श्रद्धा हो तो मनुष्य स्वार्थ का विचार किये बिना भी अपने कर्तव्य पर आरूढ़ हो सकता है| परन्तु यह श्रद्धा हो कैसे ? उसका आचार क्या हो ? Continue reading “दुर्लभ श्रद्धा” »

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