1 0 Tag Archives: जैन आगम
post icon

भगवान सत्य

भगवान सत्य

तं सच्चं भगवं

सत्य ही भगवान है

भगवान, ईश्वर, गॉड, अल्लाह, खुदा आदि परमात्मा के विभिन्न नाम हैं| जगत में परमात्मा ही सर्वोच्च सत्ता पर प्रतिष्ठित है; परन्तु वह परमात्मा कैसा है ? उसका स्वरूप क्या है ? इस विषय में विभिन्न दार्शनिकों के विभिन्न मत हैं| Continue reading “भगवान सत्य” »

Leave a Comment
post icon

अदीनभाव से रहो

अदीनभाव से रहो

अदीणमणसो चरे
विनय गुण है; परन्तु दीनता दोष है| विनीत विवेकशील होता है| वह अपने से अधिक ज्ञानियों के सामने सदा नम्र रहता है, जिससे कि वह उनसे ज्ञान-लाभ पा सके| Continue reading “अदीनभाव से रहो” »

Leave a Comment
post icon

अनन्यदर्शी बनें

अनन्यदर्शी बनें

जो अणण्णदंसी से अणण्णारामे

जो अनन्यदर्शी होता है, वह अनन्याराम होता है और जो अनन्याराम होता है, वह अनन्यदर्शी होता है

‘स्व’ या आत्मा के अतिरिक्त जो अन्यत्र अपनी दृष्टि नहीं रखता, वह अनन्यदृष्टि है| ऐसा व्यक्ति अन्यत्र रमण न करने से ‘अनन्याराम’ कहलाता है| Continue reading “अनन्यदर्शी बनें” »

Leave a Comment
post icon

एकज्ञ-सर्वज्ञ

एकज्ञ सर्वज्ञ

जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ|
जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ||

जो एक को जानता है, वह सबको जानता है और जो सबको जानता है, वह एक को जानता है

जिसे एक (आत्मा) का ज्ञान है, उसे सब (अनात्म पदार्थों) का ज्ञान है और जिसे सब (अजीव तत्त्वों) का ज्ञान है, उसे एक (आत्मतत्त्व) का ज्ञान है|

जिसे आत्मस्वरूप का सम्यग्ज्ञान हो जाता है, वह अनात्मतत्त्वों में रमण नहीं करता; क्यों कि वह आत्मभि पदार्थों के स्वरूप को – उनकी क्षणिकताको भी जान लेता है| Continue reading “एकज्ञ-सर्वज्ञ” »

Leave a Comment
post icon

सम्यक्त्व के अभाव में

सम्यक्त्व के अभाव में

नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूणं

सम्यक्त्व के अभाव में चारित्र नहीं हो सकता

सम्यक्त्व का अर्थ है – सम्यक् पर श्रद्धा| सदाचार क्या है और दुराचार क्या? – अच्छे आचरण का फल कैसा होता है; बुरे आचरण का कैसा? – किसने किस समय कैसा आचरण किया और उसे कब कैसा फल प्राप्त हुआ? यही बताने के लिए विभिन्न धर्मशास्त्र रचे जाते हैं, जिससे कि शास्त्रीय स्वाध्याय करनेवाले या शास्त्रीय प्रवचन सुननेवाले दुराचार से दूर रहकर सदाचार को अपनाने की – जीवन में उतारने की प्रेरणा ग्रहण कर सकें| Continue reading “सम्यक्त्व के अभाव में” »

Leave a Comment
post icon

मूर्त्त या अमूर्त्त

मूर्त्त या अमूर्त्त

नो इन्दियग्गेज्झ अमुत्तभावा,
अमुत्तभावा वि य होइ निच्चं

आत्मा आदि अमूर्त्त तत्त्व इन्द्रियग्राह्य नहीं होते और जो अमूर्त्त होते हैं, वे नित्य भी होते हैं

यथार्थ तत्त्वों के ज्ञाता जानते हैं कि पदार्थ दो प्रकार के होते हैं – मूर्त्त और अमूर्त्त, साकार और निराकार या प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष| Continue reading “मूर्त्त या अमूर्त्त” »

Leave a Comment
post icon

समय पर पूरा कीजिये

समय पर पूरा कीजिये

जेहिं काले परक्कंतं,
न पच्छा परितप्पए

जो समय पर अपना काम कर लेते हैं, वे बाद में पछताते नहीं है

जो आलस्यवश अपना कर्त्तव्य समय पर पूरा नही करते, वे बाद में पछताते हैं, परन्तु उससे लाभ क्या? जिसे पौधे को सूखने से पहले सिंचित नहीं किया, उसके लिए बाद में बैठे-बैठे पछताने से क्या वह हराभरा हो जायेगा? कभी नहीं| Continue reading “समय पर पूरा कीजिये” »

Leave a Comment
post icon

ज्ञान और सदाचार

ज्ञान और सदाचार

न संतसंति मरणंते,
सीलवंता बहुस्सुया

ज्ञानी और सदाचारी मृत्युपर्यन्त त्रस्त (भयाक्रान्त) नहीं होते

दुःख भूल का परिणाम है | भूल क्यों होती है? अज्ञान से| कैसे होती है? दुराचार से| Continue reading “ज्ञान और सदाचार” »

Leave a Comment
post icon

बोलने की विधि

बोलने की विधि

नापुट्ठो वागरे किं चि,
पुट्ठो, वा नालियं वए

बिना पूछे कुछ भी नहीं बोलना चाहिये और पूछे जाने पर भी असत्य नहीं बोलना चाहिये

अभिमान ही ज्ञान का अजीर्ण है| जिन्हें ज्ञान के साथ अभिमान भी होता है, समझना चाहिये कि उनको अभी ज्ञान पचा नहीं है| Continue reading “बोलने की विधि” »

Leave a Comment
post icon

आस्रव-संवर

आस्रव संवर

समुप्पायमजाणंता, कहं नायंति संवरं|

आस्रव को न जानने वाले संवर को कैसे जान सकते है?

एक विशाल सरोवर की कल्पना कीजिये| उसमें एक नौका तैर रही है| नौका में अनेक यात्री बैठे हैं| धीरे-धीरे नौका डूबने लगती है| नौका में पानी का प्रवेश होने लगता है| यात्री डूबने के डर से चिल्लाते हैं – ‘अरे इस पानी को रोको-जैसे भी बने इस पानी का आना बन्द करो! Continue reading “आस्रव-संवर” »

Leave a Comment
Page 4 of 25« First...23456...1020...Last »