सत्य ही भगवान है
भगवान सत्य
अदीनभाव से रहो
अनन्यदर्शी बनें
जो अनन्यदर्शी होता है, वह अनन्याराम होता है और जो अनन्याराम होता है, वह अनन्यदर्शी होता है
एकज्ञ-सर्वज्ञ
जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ||
जो एक को जानता है, वह सबको जानता है और जो सबको जानता है, वह एक को जानता है
जिसे आत्मस्वरूप का सम्यग्ज्ञान हो जाता है, वह अनात्मतत्त्वों में रमण नहीं करता; क्यों कि वह आत्मभि पदार्थों के स्वरूप को – उनकी क्षणिकताको भी जान लेता है| Continue reading “एकज्ञ-सर्वज्ञ” »
सम्यक्त्व के अभाव में
सम्यक्त्व के अभाव में चारित्र नहीं हो सकता
मूर्त्त या अमूर्त्त
अमुत्तभावा वि य होइ निच्चं
आत्मा आदि अमूर्त्त तत्त्व इन्द्रियग्राह्य नहीं होते और जो अमूर्त्त होते हैं, वे नित्य भी होते हैं
समय पर पूरा कीजिये
न पच्छा परितप्पए
जो समय पर अपना काम कर लेते हैं, वे बाद में पछताते नहीं है
ज्ञान और सदाचार
सीलवंता बहुस्सुया
ज्ञानी और सदाचारी मृत्युपर्यन्त त्रस्त (भयाक्रान्त) नहीं होते
बोलने की विधि
पुट्ठो, वा नालियं वए
बिना पूछे कुछ भी नहीं बोलना चाहिये और पूछे जाने पर भी असत्य नहीं बोलना चाहिये
आस्रव-संवर
आस्रव को न जानने वाले संवर को कैसे जान सकते है?