तण्हाणुबंधणाणि य वोच्छिन्दइ
वीतरागता से स्नेह औ तृष्णा के बन्धन कट जाते हैं
वीतरागता से स्नेह औ तृष्णा के बन्धन कट जाते हैं
हे पुरुष! तू सत्य को ही अच्छी तरह जान ले
जो विचारपूर्वक परिमित और निर्दोष वचन बोलता है, वह सज्जनों के बीच प्रशंसा पाता है
सद्गृहस्थ धर्मानुकूल ही आजीविका करते हैं
मायावी और प्रमादी फिर से गर्भ में आते हैं
ज्यों-ज्यों लाभ होता है, त्यों त्यों लोभ होता है और लाभ से लोभ बढ़ता रहता है
सफलता से उत्साह बढ़ता है और विफलता से वह नष्ट हो जाता है| Continue reading “लाभ और लोभ” »
बुद्धिमान साधक लार चाटने वाला न बने अर्थात् परित्यक्त भोगों की पुनः कामना न करे
जो संविभागी नहीं है अर्थात् प्राप्त सामग्री को साथियों में बॉंटता नहीं है, उसकी मुक्ति नहीं होती
हे बुद्धिमान साधक! अवशिष्ट आयु को देखते हुए समय को पहचान-अवसर का मूल्य समझ
निरर्थक शिक्षा छोड़कर सार्थक शिक्षा ही ग्रहण करें