1 0 Tag Archives: जैन आगम
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स्नेह और तृष्णा

स्नेह और तृष्णा

वीयरागयाएणं नेहाणुबंधणाणि,
तण्हाणुबंधणाणि य वोच्छिन्दइ

वीतरागता से स्नेह औ तृष्णा के बन्धन कट जाते हैं

द्वेष दुर्गुण है – त्याज्य है| द्वेष का विरोधी राग है; फिर भी राग एक दुर्गुण है और वह भी द्वेष की तरह ही त्याज्य है| Continue reading “स्नेह और तृष्णा” »

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सच्चाई को जानिये

सच्चाई को जानिये

पुरिसा! सच्चमेव समभिजाणाहि

हे पुरुष! तू सत्य को ही अच्छी तरह जान ले

दुनिया में जानने योग्य बहुत-सी बातें हैं| भूगोल, खगोल, भूगर्भ, गणित, इतिहास, भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, राजनीति, अर्थशास्त्र, कोष, व्याकरण, छन्द, काव्य, अलंकार, रस, ललितकलाएँ, ज्योतिष, सामुद्रिक, शकुन, साहित्य विभभिन्न देशों की विभिन्न भाषाएँ, विविध लिपियॉं, संगीतशास्त्र, नीति, दर्शन, न्याय आदि सैकड़ों विषय हैं| Continue reading “सच्चाई को जानिये” »

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वाणी के गुण

वाणी के गुण

मियं अदुट्ठं अणुवीइ भासए,
सयाण मज्झे लहइ पसंसणं

जो विचारपूर्वक परिमित और निर्दोष वचन बोलता है, वह सज्जनों के बीच प्रशंसा पाता है

बोलते सब हैं, किन्तु ऐसे कितने व्यक्ति हैं, जो वास्तव में बोलना जानते हैं? Continue reading “वाणी के गुण” »

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धर्मानुकूल आजीविका

धर्मानुकूल आजीविका

धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति

सद्गृहस्थ धर्मानुकूल ही आजीविका करते हैं

जीवित रहने के लिए अन्न और जल चाहिये – कुटुम्ब का पोषण करने के लिए धन चाहिये| मुनियों की बात दूसरी है; परन्तु जो गृहस्थ है, उन्हें तो इस संसार में पद पद पर सम्पत्ति की आवश्यकता होती है| कहते हैं – जिस मुनि के पास कौड़ी (एक पैसा भी) हो, वह कौड़ी का और जिस गृहस्थ के पास कौड़ी न हो, वह भी कौड़ी का ! Continue reading “धर्मानुकूल आजीविका” »

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गर्भ में आते हैं

गर्भ में आते हैं

माई पमाई पुण एइ गब्भं

मायावी और प्रमादी फिर से गर्भ में आते हैं

गर्भ में आने का अर्थ है – जन्म धारण करना और जन्म धारण करने का अर्थ है – एक दिन सब छोड़ कर मर जाना अर्थात् जन्म-मरण के चक्कर में पड़े रहना| Continue reading “गर्भ में आते हैं” »

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लाभ और लोभ

लाभ और लोभ

जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवड्ढइ

ज्यों-ज्यों लाभ होता है, त्यों त्यों लोभ होता है और लाभ से लोभ बढ़ता रहता है

स्वार्थ-सिद्धि के लिए प्रत्येक संसारी जीव निरन्तर प्रयत्न करता रहता है| इस प्रयत्न में कभी उसे सफलता प्राप्त होती है और कभी विफलता|

सफलता से उत्साह बढ़ता है और विफलता से वह नष्ट हो जाता है| Continue reading “लाभ और लोभ” »

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थूक न चाटें

थूक न चाटें

से मइमं परिय मा य हु लालं पच्चासी

बुद्धिमान साधक लार चाटने वाला न बने अर्थात् परित्यक्त भोगों की पुनः कामना न करे

जब आँखें खोलकर साधक दुनिया में यह देखता है कि लोग भोग से रोग के शिकार बनते हैं – वैद्यों और डाक्टरों के द्वार खटखटाते हैं – उनके लम्बे-लम्बे बिल चुकाते हैं; फिर भी रोगों के चंगुल से वे अपनी पूरी तरह पिण्ड नहीं छुड़ा पाते, एक के बादे एक कोई-न-कोई रोग शरीर में उत्पन्न होता ही रहता है; Continue reading “थूक न चाटें” »

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असंविभागी

असंविभागी

असंविभागी न हु तस्स मोक्खो

जो संविभागी नहीं है अर्थात् प्राप्त सामग्री को साथियों में बॉंटता नहीं है, उसकी मुक्ति नहीं होती

जो अकेला ही प्राप्त सामग्री का भोग करता है, उसे बहुत कम सुख मिलता है| इसके विपरीत जो व्यक्ति दूसरे साथियों को बॉंट-बॉंट कर सबके साथ बैठ कर अपनी प्राप्त सामग्री भोगता है, उसे अधिक सुख का अनुभव होता है| Continue reading “असंविभागी” »

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समय को पहचानिये

समय को पहचानिये

अणभिक्कंतं च वयं संपेहाए,
खणं जाणाहि पंडिए

हे बुद्धिमान साधक! अवशिष्ट आयु को देखते हुए समय को पहचान-अवसर का मूल्य समझ

हीरा भी अमूल्य है और पत्थर भी; परन्तु दोनों की अमूल्यता में महान अन्तर है| हीरा इसलिए अमूल्य है कि उसका कोई मूल्य ही नहीं है| समय की अमूल्यता भी हीरे की तरह है| Continue reading “समय को पहचानिये” »

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सच्ची शिक्षा

सच्ची शिक्षा

अट्ठजुत्ताणि सिक्खिज्जा,
निरट्ठाणि उवज्जए

निरर्थक शिक्षा छोड़कर सार्थक शिक्षा ही ग्रहण करें

कुछ विचारकों का मत है कि कला, कला के लिए है और कुछ कला को कल्याण के लिए मानते हैं| पहले विचारकों के अनुसार कला का कोई उद्देश्य होने पर कला मर जायेगी और दूसरे विचारकों के अनुसार कला का यदि कोई अच्छा उद्देश्य न हुआ तो कला दूसरों को मार डालेगी| Continue reading “सच्ची शिक्षा” »

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