1 0 Archive | उत्तराध्ययन सूत्र RSS feed for this section
post icon

अभोगी नहीं भटकता

अभोगी नहीं भटकता

भोगी भमइ संसारे, अभोगी विप्पमुच्चइ|

भोगी संसार में भटकता है और अभोगी मुक्त हो जाता है

जो इन्द्रियों के वश में रहता है, वह विषयसामग्री को एकत्र करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहता है| अनुकूल विषयसामग्री को जुटा कर कभी वह एक इंद्रिय को तृप्त करता है तो कभी दूसरी को| Continue reading “अभोगी नहीं भटकता” »

Leave a Comment
post icon

क्रिया में रुचि

क्रिया में रुचि

किरियं च रोयए धीरो

धीर पुरुष क्रिया में रुचिवाला होता है

बच्चा इसलिए दूध नहीं पीता कि दूध से शरीर को पोषण मिलता है| वह तो केवल इसलिए पीता है कि उसे दूध मीठा लगता है, भाता है| Continue reading “क्रिया में रुचि” »

Leave a Comment
post icon

विनय में स्थिर करें

विनय में स्थिर करें

विणए ठविज्ज अप्पाणं, इच्छंतो हियमप्पणो

आत्महितैषी साधक अपने को विनय में स्थिर करे

किसी बैलगाड़ी या तॉंगे में बैठने वाला व्यक्ति स्थिर रहने का चाहे कितना भी प्रयास क्यों न करे, उसका बदन हिलता ही रहेगा| इसके विपरीत जमीन पर अथवा किसी शिला पर बैठने वाले व्यक्ति पायेंगे; कि उनका शरीर स्थिर है| शरीर की अस्थिरता या स्थिरता उसके आधार पर अवलम्बित है| Continue reading “विनय में स्थिर करें” »

Leave a Comment
post icon

मनुष्यभव

मनुष्यभव

जीवा सोहिमणुप्पत्ता, आययन्ति मणुस्सयं

सांसारिक जीव क्रमशः शुद्ध होते हुए मनुष्यभव पाते हैं

जीव शुभाशुभ कर्मों के फलस्वरूप विभिन्न योनियों में जन्म लेते हैं| ऐसी योनियों की संख्या शास्त्रों में चौरासी लाख बताई गयी है| मनुष्य योनि सर्वश्रेष्ठ मानी गई है; क्योंकि यहीं से सिद्धपद की प्राप्ति हो सकती है – मोक्ष की साधना हो सकती है| Continue reading “मनुष्यभव” »

Leave a Comment
post icon

अदीनभाव से रहो

अदीनभाव से रहो

अदीणमणसो चरे
विनय गुण है; परन्तु दीनता दोष है| विनीत विवेकशील होता है| वह अपने से अधिक ज्ञानियों के सामने सदा नम्र रहता है, जिससे कि वह उनसे ज्ञान-लाभ पा सके| Continue reading “अदीनभाव से रहो” »

Leave a Comment
post icon

सम्यक्त्व के अभाव में

सम्यक्त्व के अभाव में

नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूणं

सम्यक्त्व के अभाव में चारित्र नहीं हो सकता

सम्यक्त्व का अर्थ है – सम्यक् पर श्रद्धा| सदाचार क्या है और दुराचार क्या? – अच्छे आचरण का फल कैसा होता है; बुरे आचरण का कैसा? – किसने किस समय कैसा आचरण किया और उसे कब कैसा फल प्राप्त हुआ? यही बताने के लिए विभिन्न धर्मशास्त्र रचे जाते हैं, जिससे कि शास्त्रीय स्वाध्याय करनेवाले या शास्त्रीय प्रवचन सुननेवाले दुराचार से दूर रहकर सदाचार को अपनाने की – जीवन में उतारने की प्रेरणा ग्रहण कर सकें| Continue reading “सम्यक्त्व के अभाव में” »

Leave a Comment
post icon

मूर्त्त या अमूर्त्त

मूर्त्त या अमूर्त्त

नो इन्दियग्गेज्झ अमुत्तभावा,
अमुत्तभावा वि य होइ निच्चं

आत्मा आदि अमूर्त्त तत्त्व इन्द्रियग्राह्य नहीं होते और जो अमूर्त्त होते हैं, वे नित्य भी होते हैं

यथार्थ तत्त्वों के ज्ञाता जानते हैं कि पदार्थ दो प्रकार के होते हैं – मूर्त्त और अमूर्त्त, साकार और निराकार या प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष| Continue reading “मूर्त्त या अमूर्त्त” »

Leave a Comment
post icon

बोलने की विधि

बोलने की विधि

नापुट्ठो वागरे किं चि,
पुट्ठो, वा नालियं वए

बिना पूछे कुछ भी नहीं बोलना चाहिये और पूछे जाने पर भी असत्य नहीं बोलना चाहिये

अभिमान ही ज्ञान का अजीर्ण है| जिन्हें ज्ञान के साथ अभिमान भी होता है, समझना चाहिये कि उनको अभी ज्ञान पचा नहीं है| Continue reading “बोलने की विधि” »

Leave a Comment
post icon

ज्ञान और सदाचार

ज्ञान और सदाचार

न संतसंति मरणंते,
सीलवंता बहुस्सुया

ज्ञानी और सदाचारी मृत्युपर्यन्त त्रस्त (भयाक्रान्त) नहीं होते

दुःख भूल का परिणाम है | भूल क्यों होती है? अज्ञान से| कैसे होती है? दुराचार से| Continue reading “ज्ञान और सदाचार” »

Leave a Comment
post icon

अड़ियल टट्टू

अड़ियल टट्टू

मा गलियस्सेव कसं, वयणमिच्छे पुणो पुणो

बार बार चाबुक की मार खाने वाले गलिताश्‍व (अड़ियल टट्टू) की तरह कर्तव्यपालन के लिए बार-बार गुरुओं के निर्देश की अपेक्षा मत रखो

नित्य करने के लिए जो कर्त्तव्य निर्दिष्ट हो, उसे बिना कहे स्वयं प्रेरणा से प्रतिदिन करते रहने में ही शिष्य की शोभा है| विवेकी सुविनीत शिष्य ऐसा ही करते हैं और अपने गुरुओं के हृदय में स्थान पा लेते हैं| Continue reading “अड़ियल टट्टू” »

Leave a Comment
Page 3 of 912345...Last »