कोई किसी दूसरे के दुःख को बाँट नहीं सकता
दुःख कोई बाँट नही सकता
परिहास न करें
बुद्धिमान को कभी उपहास नहीं करना चाहिये
बात लम्बी न करें
थोड़े में कही जानेवाली बात को व्यर्थ ही लम्बी न करें
सोचकर बोलें
सोचकर बोलें
शुद्धात्मा
जिसकी आत्मा भावनायोग से शुद्ध है, वह जल में नौका के समान है
चूहे को भी बिल्ली मुँह से पकड़ती है और अपने बच्चे को भी; परन्तु एक को वह खाना चाहती है और दूसरे को सुरक्षित रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना चाहती है| क्रियाएँ समान होने पर भी भावना में कितना अन्तर है?
किसी पुत्र को उसके पिताजी भी पीटते हैं और अन्य बालक भी; परन्तु पिताजी उसे सुधारना चाहते हैं और अन्य बालक शत्रुतावश ऐसा करते हैं| इस प्रकार पिटाई एक-सी होने पर भी भावों की भिन्नता से परिणाम भिन्न भिन्न होते हैं|
ज्ञानी कहते हैं कि भावों का ही अधिक महत्त्व है| अतः भावनायोग से जिनका अन्तःकरण शुद्ध हो जाता है; वे जल में नौका के समान तैरते हुए उस पार चले जाते हैं; क्योंकि वे शुद्धात्मा हैं|
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/15/5
अनेकान्तवादी बनें
स्याद्वाद से युक्त वचनों का प्रयोग करना चाहिये
‘स्याद्वाद’ एक दार्शनिक सिद्धान्त है| ‘स्यात्’ का अर्थ अपेक्षा है; इसलिए इसे सापेक्षवाद भी कह सकते हैं| वैसे किसी एक बात का आग्रह न होने से यह ‘अनेकान्तवाद’ के नाम से ही दुनिया में अधिक प्रसिद्ध है| Continue reading “अनेकान्तवादी बनें” »
ज्ञान का सार
जं न हिंसइ किंचणं
अहिंसा या दया एक धर्म है; किन्तु इसका सम्यक् परिपालन करने से पहले ज्ञान होना आवश्यक है
सम्यग्दृष्टि में स्थिरता
सम्यग्दृष्टि साधक को सत्यदृष्टि का अपलाप नहीं करना चाहिये
अवक्तव्य
जो गोपनीय हो उसे न कहें
न प्रिय, न अप्रिय
पियमप्पियं कस्स वि नो करेज्जा
सारे जगत को जो समभाव से देखता है उसे न किसी का प्रिय करना चाहिये, न अप्रिय