1 0 Archive | सूत्रकृतांग सूत्र RSS feed for this section
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चक्षु चाहिये

चक्षु चाहिये

सूरोदये पासति चक्खुणेव

सूर्य के उदय होने पर भी आँख से ही देखा जा सकता है

दर्पण सामने हो; फिर भी अन्धे को उसमें अपनी सूरत दिखाई नहीं देती| सूरत देखने के लिए अपनी आँख चाहिये| Continue reading “चक्षु चाहिये” »

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अन्धी पीसे, कुत्ता खाये

अन्धी पीसे, कुत्ता खाये

ए हरंति तं वित्तं, कम्मी कम्मेहिं किच्चति

यथावसर संचित धन को तो अन्य व्यक्ति उड़ा लेते हैं और परिग्रही को अपने पापकर्मों का दुष्फल स्वयं भोगना पड़ता है

व्यक्ति जब चोरी करता है अथवा किसी के धन का अपहरण करता है, तब उसके अन्तःकरण से एक आवाज़ निकलती है – ‘‘मत कर, ऐसा मत कर| बुरा काम है यह|’’ – परन्तु उस आवाज को अनसुनी करके स्वार्थ और प्रलोभन से प्रेरित हो कर व्यक्ति अपना कार्य कर ही डालता है| Continue reading “अन्धी पीसे, कुत्ता खाये” »

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कामों की कामना

कामों की कामना

कामी कामे न कामए, लद्धे वा वि अलद्ध कण्हुइ

साधक कामी बनकर कामभोगों की कामना न करे| उपलब्ध को भी अनुपलब्ध समझे| प्राप्त भोगों पर भी उपेक्षा करे|

काम-भोगों का त्याग कर के जो प्रवृजित हो जाते हैं – दीक्षित हो जाते हैं, उन्हें फिर से कामुक बनकर कामभोगों की कामना कभी नहीं करनी चाहिये और न उनकी प्राप्ति के लिए कोई प्रयत्न ही करना चाहिये| Continue reading “कामों की कामना” »

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विषलिप्त कॉंटा

विषलिप्त कॉंटा

तम्हा उ वज्जए इत्थी,
विसलित्तं व कंटगं नच्चा

विषलिप्त कॉंटे की तरह जानकर ब्रह्मचारी स्त्री का त्याग करे

स्त्रियों के प्रति – ऐसा लगता है कि प्रकृति ने कुछ पक्षपात किया है| पुरुषों की अपेक्षा उनका स्वर स्वाभाविक रूप से अधिक मधुर होता है| कोयल का पंचम स्वर उनके कण्ठ में बिठा दिया गया है| Continue reading “विषलिप्त कॉंटा” »

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वैर में रस न लें

वैर में रस न लें

वैराइं कुव्वइ वेरो,
तओ वेरेहिं रज्जति

वैरी वैर करता है और तब उसी में रस लेता है

खून का दाग खून से नहीं धुलता| वह पानी से ही धुल सकता है| उसी प्रकार वैर से कभी वैर नष्ट नहीं हो सकता| वह शान्ति से – क्षमा से – सहिष्णुता से – प्रेम के प्रयोग से ही नष्ट हो सकता है|परन्तु कुछ लोग ऐसे हैं, जो वैर को वैर से नष्ट करना चाहते हैं| ऐसे लोग आग को घासलेट से बुझाना चाहते हैं, पानी से नहीं| कैसी मूर्खता है? Continue reading “वैर में रस न लें” »

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बालप्रज्ञ

बालप्रज्ञ

अं जणं खिंसइ बालपे

बालप्रज्ञ (अज्ञ) दूसरे मनुष्यों को चिढ़ाता है

स्वयं रोना आर्त्तध्यान है| दूसरों को रुलाना रौद्रध्यान है| संसार के अधिकांश जीवों का अधिकांश समय रोने और रुलाने में ही नष्ट होता है| Continue reading “बालप्रज्ञ” »

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अज्ञ कौन है ?

अज्ञ कौन है ?

बालो पापेहिं मिज्जति

अज्ञ पापों पर घमण्ड करता है

कार्य दो तरह के होते हैं – भले और बुरे| भले कार्य पुण्य और बुरे कार्य पाप कहलाते हैं| Continue reading “अज्ञ कौन है ?” »

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वैर-विरोध मत कीजिये

वैर विरोध मत कीजिये

न विरुज्झेज्ज केण वि

किसी के साथ वैर-विरोध मत करो

पूर्वजन्म में किये गये शुभाशुभ कर्मों के ही अनुसार इस जन्म में अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति प्राप्त होती है| भ्रम से लोग यह समझ बैठते हैं कि अमुक व्यक्ति हमारा विरोधी है – वैरी है और हमारे सारे कष्ट उसीके द्वारा पैदा किये हुए हैं, हमारी प्रतिकूल परिस्थिति का जन्मदाता भी वही है| परन्तु बात ऐसी नहीं है| Continue reading “वैर-विरोध मत कीजिये” »

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सूक्ष्म शल्य

सूक्ष्म शल्य

सुहुमे सल्ले दुरुद्धरे

सूक्ष्म शल्य बड़ी कठिनाई से निकाला जा सकता है

जो लोग पैदल चलते हैं, उन्हें मार्ग में कॉंटे चुभ जायें तो वे क्या करते हैं? दूसरे कॉंटे से अथवा सूई से निकाल लेते हैं| यद्यपि कॉंटा निकल जाने पर भी वेदना बनी रहती है, फिर भी कुछ समय बाद मिट जाती है और कुछ दिन बाद तो उसका छेद भी गायब हो जाता है| चमड़ीसे चमड़ी मिल जाती है| Continue reading “सूक्ष्म शल्य” »

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अतिवेल न बोलें

अतिवेल न बोलें

नाइवेलं वएज्जा

अधिक समय तक एवं अमर्याद न बोलें

‘वेला’ का अर्थ समय भी होता है और मर्यादा भी; इसलिए इस सूक्ति के दो अर्थ होते हैं| Continue reading “अतिवेल न बोलें” »

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