जिसकी दृष्टि सम्यक् है, वह सदा अमूढ़ होता है
सदा अमूढ़
सम्मद्दिट्ठि सया अमूढे
मिथ्याद्दष्टि मूढ़ होता है; उसकी मूढ़ता सत्संग से मिट सकती है; किंतु सम्यग्द्दष्टि अमूढ़ होता है, उसकी अमूढ़ता कुसंगति से भी नहीं मिटती| Continue reading “सदा अमूढ़” »
विग्रहवर्धक बात न कहें
न य विग्गहियं कहं कहिज्जा
विग्रह बढ़ानेवाली बात नहीं करनी चाहिये
अति मात्रा में नहीं लेते
नाइमत्तपाणभोयणभोई से निग्गंथे
जो अति मात्रा में अ-जल ग्रहण नहीं करता, वही निर्ग्रन्थ है
भगवान सत्य
तं सच्चं भगवं
सत्य ही भगवान है
अदीनभाव से रहो
अदीणमणसो चरे
अनन्यदर्शी बनें
जो अणण्णदंसी से अणण्णारामे
जो अनन्यदर्शी होता है, वह अनन्याराम होता है और जो अनन्याराम होता है, वह अनन्यदर्शी होता है
एकज्ञ-सर्वज्ञ
जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ|
जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ||
जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ||
जो एक को जानता है, वह सबको जानता है और जो सबको जानता है, वह एक को जानता है
जिसे आत्मस्वरूप का सम्यग्ज्ञान हो जाता है, वह अनात्मतत्त्वों में रमण नहीं करता; क्यों कि वह आत्मभि पदार्थों के स्वरूप को – उनकी क्षणिकताको भी जान लेता है| Continue reading “एकज्ञ-सर्वज्ञ” »
सम्यक्त्व के अभाव में
नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूणं
सम्यक्त्व के अभाव में चारित्र नहीं हो सकता
मूर्त्त या अमूर्त्त
नो इन्दियग्गेज्झ अमुत्तभावा,
अमुत्तभावा वि य होइ निच्चं
अमुत्तभावा वि य होइ निच्चं
आत्मा आदि अमूर्त्त तत्त्व इन्द्रियग्राह्य नहीं होते और जो अमूर्त्त होते हैं, वे नित्य भी होते हैं
समय पर पूरा कीजिये
जेहिं काले परक्कंतं,
न पच्छा परितप्पए
न पच्छा परितप्पए
जो समय पर अपना काम कर लेते हैं, वे बाद में पछताते नहीं है