जं सेयं तं समायरे
जो श्रेय (हितकर) हो, उसीका आचरण करना चाहिये
जो श्रेय (हितकर) हो, उसीका आचरण करना चाहिये
समय पर समयोचित कार्य करना चाहिये
जो परिग्रह में व्यस्त हैं, वे संसार में अपने प्रति वैर ही बढ़ाते हैं
यदि जलस्पर्श (स्नान) से ही सिद्धि प्राप्त होती तो बहुत-से जलजीव सिद्ध हो जाते
तपविशेष तो प्रत्यक्ष दिखाई देता है, परन्तु कोई जातिविशेष नहीं दिखाई देता
लोभ का प्रसंग आने पर लोभी झूठ बोलने लगता है
शरीर सादि है और सान्त भी
लोभी और चञ्चल व्यक्ति झूठ बोला करता है
जिसके विषय में पूरी जानकारी न हो, उसके विषय में ‘‘यह ऐसा ही है’’ ऐसी बात न कहें
मुखरता सत्यवचन का विघाता करती है