क्रोध को शान्ति से नष्ट करें
क्रोध का नाश
विषय-विरक्ति
वान्त पीना चाहते हो ? इससे तो तुम्हारा मर जाना अच्छा है
दूर से ही त्याग
कुशील (दुराचार) बढ़ानेवाले कारणों का दूर से ही त्याग करना चाहिये
पीठ का मांस न खायें
पीठ का मांस नहीं खाना चाहिये अर्थात् किसी की निन्दा उसकी अनुपस्थिति में नहीं करनी चाहिये
साधु-सम्पर्क
साधुओं से सम्पर्क रखना चाहिये
संगति पूरे जीवन को प्रभावित करती है| वह उन्नति के द्वार खोल देती है| एक कीट – कितना साधारण जीवन होता है उसका? परन्तु फूलों के साथ रहकर भगवान की मूर्ति के सिरपर जा पहुँचता है वह| एक छोटी नदी या नाला गंगा के साथ मिलकर कहॉं जा पहुँचता है? रत्नाकर समुद्र में| Continue reading “साधु-सम्पर्क” »
त्यागी कौन नहीं ?
जो पराधीन होने से भोग नहीं कर पाते, उन्हें त्यागी नहीं कहा जा सकता
मूर्च्छा ही परिग्रह है
मूर्च्छा को ही परिग्रह कहा गया है
वाणी के गुण
सयाण मज्झे लहइ पसंसणं
जो विचारपूर्वक परिमित और निर्दोष वचन बोलता है, वह सज्जनों के बीच प्रशंसा पाता है
असंविभागी
जो संविभागी नहीं है अर्थात् प्राप्त सामग्री को साथियों में बॉंटता नहीं है, उसकी मुक्ति नहीं होती
प्रशंसा से मोह
कानों को सुख देने वाले (मधुर) शब्दों में आसक्ति नहीं रखनी चाहिये