न हासमाणो वि गिरं वएज्जा
हँसते हुए नहीं बोलना चाहिये
हँसते हुए नहीं बोलना चाहिये
पहले ज्ञान, फिर दया
माया मित्रता को नष्ट करती है
जिसकी दृष्टि सम्यक् है, वह सदा अमूढ़ होता है
विग्रह बढ़ानेवाली बात नहीं करनी चाहिये
गुरुजनों की अवहेलना करनेवाला कभी बन्धनमुक्त नहीं हो सकता|
जिसके निकट रह कर धर्म के पद सीखे हों, उसके प्रति विनयपूर्ण व्यवहार रखना चाहिये
क्रोध को शान्ति से नष्ट करें
वान्त पीना चाहते हो ? इससे तो तुम्हारा मर जाना अच्छा है
कुशील (दुराचार) बढ़ानेवाले कारणों का दूर से ही त्याग करना चाहिये