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सुखद और दुःखद
खणमित्तसुक्खा बहुकालदुक्खा
विषयभोग क्षणमात्र सुख देते हैं, किंतु बहुकाल पर्यन्त दुःख देते हैं
कर्मों से कष्ट
सकम्मुणा विप्परियासुवेइ
अपने किये कर्मों से ही व्यक्ति कष्ट पाता है
भगवती अहिंसा
भगवती अहिंसा…. भीयाणं पि व सरणं
भगवती अहिंसा भीतों (डरे हुओं) के लिए शरण के समान है
जीवन की क्षणभुंगरता
वओ अच्चेति जोव्वणं च
आयु बीत रही है और युवावस्था भी
मन के जीते जीत
इमेण चेव जुज्झाहि,
किं ते जुज्झेण बज्झओ ?
किं ते जुज्झेण बज्झओ ?
आन्तरिक विकारों से ही युद्ध कर, बाह्य युद्ध से तुझे क्या लाभ?
वीर्यको न छिपायें
नो निह्नवेज्ज वीरियं
वीर्य को छिपाना नहीं चाहिये
जो बुद्धिमान हैं, उन्हें अपनी बुद्धि का उपयोग दूसरों के झगड़े मिटाने में करना चाहिये| Continue reading “वीर्यको न छिपायें” »
हाथी और कुन्थु में जीवन
हत्थिस्स य कुन्थुस्स य समे चेव जीवे
हाथी और कुन्थु में समान ही जीव होता है
भक्तामर स्तोत्र – श्लोक 1
भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा-
मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम् |
सम्यक् प्रणम्य जिनपादयुगं युगादा-
वालम्बनं भवजले पततां जनानाम् || 1 ||
गुणनाश के कारण
चउहिं ठाणेहिं सन्ते गुणे नासेज्जा कोहेणं,
पडिनिवेसेणं, अकयण्णुयाए, मिच्छत्ताभिनिवेसेणं
पडिनिवेसेणं, अकयण्णुयाए, मिच्छत्ताभिनिवेसेणं
मनुष्य में विद्यमान गुण भी चार कारणों से नष्ट हो जाते हैं – क्रोध, ईर्ष्या, अकृतज्ञता और मिथ्या आग्रह