आत्मसाधक ममत्व के बन्धन को तोड़ फेंके; जैसे महानाग कञ्चुक को उतार देता है
ममता का बन्धन
भक्तामर स्तोत्र – एक दिव्य रचना
“भक्तामर स्तोत्र” भक्ति प्रधान स्तोत्र है, जैन काव्य परंपरा में इस स्तोत्र की अपनी महती महिमा और गरिमा हैं, स्वतंत्र पहचान है|
भक्तामर स्तोत्र का महत्व
अवंति के राजा हर्ष के दरबार में, मयूर तथा बाण नाम के दो महान विद्वान पंड़ितों नें राजा को अपनी-अपनी विद्वता के अनुरूप चमत्कारों के जरिए प्रभावित किया था। मयूर पंड़ित नें अपनी लड़की के शाप से हुये कोढ़ (कुष्ट) रोग के निवारण के लिए सूर्य-देवता की स्तुति की और छठ्ठे श्लोक की रचना करते वक्त सूर्य-देव ने प्रकट होकर वरदान दिया जिससे कुष्ट-रोग दूर हो गया। अपने ही ससुर मयूर पंड़ित का चमत्कार, पंड़ित बाण के लिए स्पर्धा का विषय बना। राजा के पास बाण पंड़ित नें प्रतिज्ञा की कि मैं चंड़िका-देवी की उपासना कर चमत्कार करूंगा। Continue reading “भक्तामर स्तोत्र – एक दिव्य रचना” »
चक्षु चाहिये
सूर्य के उदय होने पर भी आँख से ही देखा जा सकता है
कामासक्ति को छोड़िये
निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि दुःख कामासक्ति से उत्प होता है
भवतृष्णा का त्याग
संसार की तृष्णा भयंकर फल देनेवाली एक भयंकर लता है
कृत – अकृत
किये हुए को कृत और न किये हुए को अकृत कहना चाहिये
कल्याणकारिणी
अहिंसा त्रस एवं स्थावर समस्त भूतों (प्राणियों) का कल्याण करनेवाली है
वाणी का आदर्श
सत्य, हित, मित और ग्राह्य वचन बोलें
अनिदानता
भगवान ने सर्वत्र अनिदानता (निष्कामता) की प्रशंसा की है
अन्धी पीसे, कुत्ता खाये
यथावसर संचित धन को तो अन्य व्यक्ति उड़ा लेते हैं और परिग्रही को अपने पापकर्मों का दुष्फल स्वयं भोगना पड़ता है