लुप्पंति बहुसो मूढा, संसारम्मि अणंतए
अनन्त संसार में मूढ बहुशः लुप्त (नष्ट) होते हैं
अनन्त संसार में मूढ बहुशः लुप्त (नष्ट) होते हैं
प्राणियों से मैत्री करो
कृत कर्मों का (फल भोगे बिना) छुटकारा नहीं होता
जिसमें मोह नहीं होता, उसका दुःख नष्ट हो जाता है और जिसमें तृष्णा नहीं होती उसका मोह नष्ट हो जाता है
कषाय अग्नि है तो श्रुत, शील और तप को जल कहा गया है
श्रद्धा अत्यन्त दुर्लभ है
हे गौतम! तू क्षण भर के लिए भी प्रमाद मत कर
जिसमें लोभ नहीं होता, उसकी तृष्णा नष्ट हो जाती है और जो अकिंचन है, उसका लोभ नष्ट हो जाता है
लोभ से कलुषित जीव अदत्तादान (चोरी) करता है
वैडूर्यरत्न के समान चमकने वाले काच के टुकडे का, जानकारों के समक्ष कुछ भी मूल्य नहीं है