हत्थिस्स य कुन्थुस्स य समे चेव जीवे
हाथी और कुन्थु में समान ही जीव होता है
हाथी और कुन्थु में समान ही जीव होता है
मनुष्य में विद्यमान गुण भी चार कारणों से नष्ट हो जाते हैं – क्रोध, ईर्ष्या, अकृतज्ञता और मिथ्या आग्रह
संयम और तप से आत्मा को भावित (पवित्र) करता हुआ साधक विहार करता है
मृत्यु किसी भी समय आ सकती है
डरना नहीं चाहिये| भीत के निकट भय शीघ्र आते हैं
कोई किसी दूसरे के दुःख को बाँट नहीं सकता
बुद्धिमान को कभी उपहास नहीं करना चाहिये
धर्म द्वीप है, प्रतिष्ठा है, गति है और उत्तम शरण है
प्रिय करनेवाला और प्रिय बोलनेवाला अपनी शिक्षा प्राप्त करने में समर्थ होता है
तू स्वयं अनाथ है, तो फिर तू दूसरे का नाथ कैसे हो सकता है ?