नादंसणिस्स नाणं, नाणेण विणा न होंति चरणगुणा
सम्यग्दर्शन के अभाव में ज्ञान प्राप्त नहीं होता और ज्ञान के अभाव में चारित्र-गुण प्राप्त नहीं होते
सम्यग्दर्शन के अभाव में ज्ञान प्राप्त नहीं होता और ज्ञान के अभाव में चारित्र-गुण प्राप्त नहीं होते
सभी काम दुःखप्रद होते हैं
ऋषि सदा प्रसन्न रहते हैं
एक असंयत आत्मा ही अजित शत्रु है
जिसे हम अपना शत्रु समझते हैं| Continue reading “अपराजेय शत्रु” »
पूर्व सञ्चित कर्म रूप रज को साफ करो
स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है
क्रोधविजय क्षमा का जनक है
जीवन और रूप विद्युत् की गति के समान चंचल होते हैं
हितकर सच्ची बात कहनी चाहिये
अध्ययन किये गये वेद रक्षा नहीं कर सकते