इहलोगे सुचिण्णा कम्मा
इहलोगे सुहफल विवाग संजुत्ता भवन्ति
इहलोगे सुहफल विवाग संजुत्ता भवन्ति
इस लोक में किये हुए सत्कर्म इस लोक में सुखप्रद होते हैं
इस लोक में किये हुए सत्कर्म इस लोक में सुखप्रद होते हैं
स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है
बुद्धया विनाऽपि विबुधार्चित-पादपीठ!
स्तोतुं समुद्यत-मति-र्विगतत्रपोहम् |
बालं विहाय जल-संस्थितमिन्दुबिम्ब
मन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ? ||3||
दुःख स्वकृत होता है, परकृत नहीं
पहले जो जैसा कर्म किया गया है, भविष्य में वह उसी रूप में उपस्थित होता है
क्रोधविजय क्षमा का जनक है
जीवन और रूप विद्युत् की गति के समान चंचल होते हैं
मेधावी साधक को आत्मपरिज्ञान के द्वारा यह निश्चय करना चाहिये कि मैंने पूर्वजीवन में प्रमादवश जो कुछ भूल की है, उसे अब कभी नहीं करूँगा
माया को ऋजुता से और लोभ को सन्तोष से जीतें
अज्ञ अभिमान करते हैं