1 0 Tag Archives: जैन सूत्र
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प्रेम का नाशक

प्रेम का नाशक

कोहो पीइं पणासेइ

क्रोध प्रीति का नाशक है

प्रेम और क्रोध दोनों किसी स्थान पर एक साथ नहीं रह सकते | जब क्रोध होगा, प्रेम नहीं होगा और जब प्रेम होगा, क्रोध नहीं होगा| दोनों गुण एक दूसरे के विरोधी हैं – एक दूसरे के नाशक हैं| Continue reading “प्रेम का नाशक” »

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अभयदान

अभयदान

दाणाण सेट्ठं अभयप्पयाणं

अभयदान श्रेष्ठ दान है

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संयम और सुख

संयम और सुख

अप्पं दंतो सुही होई,
अस्सिं लोए परत्थ य

अपने पर नियन्त्रण रखनेवाला ही इस लोक तथा परलोक में सुखी होता है

संयम सुख का स्रोत्र है| अपनी समस्त मनोवृत्तियों पर अंकुश रखना संयम है| मनोवृत्तियॉं चंचल होती हैं – क्षणिक होती हैं| उन पर अंकुश कौन रख सकता है? Continue reading “संयम और सुख” »

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समझ लीजिये

समझ लीजिये

संबुज्झह, किं न बुज्झह?
संबोही खलु पेच्च दुल्लहा

समझो! क्यों नहीं समझते मरने पर संबोध निश्‍चित रूप से दुर्लभ है

अपने अपने शुभाशुभ कर्मों का भोग करते हुए प्राणी इस संसार में चौरासी लाख योनियों में जन्म लेते और मरते रहते हैं| मनुष्य मर कर मनुष्य के रूप में ही जन्म लेता है – ऐसा निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता| Continue reading “समझ लीजिये” »

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कायोत्सर्ग

कायोत्सर्ग

वोसिरे सव्वसो कायं, न मे देहे परीसहा

सर्वथा काया को मोह छोड़ता हूँ – मेरी देह पर कोई परीषह जैसे है ही नहीं

‘काउसग्ग’ एक पारिभाषिक शब्द है, जिसे संस्कृत में ‘कायोत्सर्ग’ कहते हैं| यह शब्द काया+उत्सर्ग से बना है| काया शरीर को कहते हैं और उत्सर्ग त्याग को; परन्तु कायोत्सर्ग का अर्थ ‘शरीर का त्याग’ नहीं है| इसका अर्थ है शरीर के मोह का त्याग| कायोत्सर्ग के बाद ही ध्यान में एकाग्रता आ सकती है| Continue reading “कायोत्सर्ग” »

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सौन्दर्य का नाश

सौन्दर्य का नाश

वण्णं जरा हरइ नरस्स रायं

हे राजन्! बुढ़ापा मनुष्य के सौन्दर्य को नष्ट कर देता है

शैशव अवस्था में व्यक्ति कितना सुन्दर दिखाई देता है? न दाढ़ी, न मूँछ, न चिन्ता, न शोक, न क्रूरता, न भय, न कपट, न अहंकार! सीधा और सरल व्यवहार! हँसमुख चेहरा और मांसल देह! क्षणभर में रोना और क्षणभर में हँसना| Continue reading “सौन्दर्य का नाश” »

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न भाषा न पांडित्य

न भाषा न पांडित्य

न चित्ता तायए भासा
कुओ विज्जाणुसासणं

विचित्र (लच्छेदार) भाषाएँ भी (दुराचारी की दुर्गति से) रक्षा नहीं कर सकतीं, फिर विद्यानुशासन (पाण्डित्य) की तो बात ही क्या?

भाषाज्ञान और विद्यानुशासन में बहुत अन्तर है| एक आदमी एक ही भाषा जानता हो; फिर भी वह विद्यानुशासित अर्थात् पण्डित हो सकता है; परन्तु कोई अन्य आदमी अनेक भाषाओं का ज्ञाता होकर भी मूर्ख हो सकता है| भाषाओं की जानकारी से ज्ञान नहीं बढ़ता| Continue reading “न भाषा न पांडित्य” »

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झुँझलायें नहीं

झुँझलायें नहीं

थोवं लद्धुं न खिंसए

थोड़ा मिलने पर झुँझलाएँ नहीं

यदि पूछा जाये कि ‘कुछ न मिलना’ अच्छा है या ‘कुछ मिलना’ तो यही उत्तर मिलेगा कि कुछ मिलना अच्छा है; परन्तु कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो टुकड़ों में या खण्डशः कोई वस्तु लेना पसन्द नहीं करते| वे पूर्ण वस्तु पाना चाहते हैं; इसलिए अपूर्ण वस्तु की प्राप्ति पर अप्रसन्न होते हैं| Continue reading “झुँझलायें नहीं” »

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क्रोध न करें

क्रोध न करें

वुच्चमाणो न संजले

साधक को कोई यदि दुर्वचन कहे; तो भी वह उस पर क्रोध न करे

मनुष्य से जाने-अनजाने भूलें होती ही रहती हैं| अपनी भूलें स्वयं अपने को मालूम नहीं होतीं; इसीलिए “गुरुदेव” की जीवन में आवश्यकता होती है| वे दयावश हमें सुधारने के लिए हमारी भूलें बताते हैं| यदि हम उनके निर्देश के अनुसार विनयपूर्वक एक-एक भूल को सुधारते रहें; तो क्रमशः हमारा जीवन शुद्ध से शुद्धतर होता चला जाये| Continue reading “क्रोध न करें” »

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सम्यग्दर्शी

सम्यग्दर्शी

सम्मत्तदंसी न करेइ पावं

सम्यग्दर्शी पाप नहीं करता

जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, बन्ध, निर्जरा और मोक्ष – ये नौ ‘तत्त्व’ हैं| इनका स्वरूप अर्थ है| तत्त्व और अर्थ पर श्रद्धा रखना ही सम्यग्दर्शन है; क्यों कि जो साधक तत्त्वों के यथार्थ स्वरूप को समझ लेता है, उसका उनके प्रति विश्‍वास हो ही जाता है| Continue reading “सम्यग्दर्शी” »

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