नो पूयणं तवसा आवहेज्जा
तप के द्वारा पूजा (प्रतिष्ठा) की अभिलाषा नहीं करनी चाहिये
तप के द्वारा पूजा (प्रतिष्ठा) की अभिलाषा नहीं करनी चाहिये
बाल (अज्ञानी या मूर्ख) की संगति नहीं करनी चाहिये
जो विचारपूर्वक बोलता है, वही निर्ग्रन्थ है
यहॉं मनुष्य विभिन्न रुचियों वाले हैं
कानों को सुख देने वाले (मधुर) शब्दों में आसक्ति नहीं रखनी चाहिये
अपने समान ही बाहर (दूसरों को) देख
पूर्व सञ्चित कर्म रूप रज को साफ करो
इस लोक में किये हुए सत्कर्म इस लोक में सुखप्रद होते हैं
स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है
दुःख स्वकृत होता है, परकृत नहीं