1 0 Tag Archives: जैन मान्यता
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आस्रव-संवर

आस्रव संवर

समुप्पायमजाणंता, कहं नायंति संवरं|

आस्रव को न जानने वाले संवर को कैसे जान सकते है?

एक विशाल सरोवर की कल्पना कीजिये| उसमें एक नौका तैर रही है| नौका में अनेक यात्री बैठे हैं| धीरे-धीरे नौका डूबने लगती है| नौका में पानी का प्रवेश होने लगता है| यात्री डूबने के डर से चिल्लाते हैं – ‘अरे इस पानी को रोको-जैसे भी बने इस पानी का आना बन्द करो! Continue reading “आस्रव-संवर” »

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अड़ियल टट्टू

अड़ियल टट्टू

मा गलियस्सेव कसं, वयणमिच्छे पुणो पुणो

बार बार चाबुक की मार खाने वाले गलिताश्‍व (अड़ियल टट्टू) की तरह कर्तव्यपालन के लिए बार-बार गुरुओं के निर्देश की अपेक्षा मत रखो

नित्य करने के लिए जो कर्त्तव्य निर्दिष्ट हो, उसे बिना कहे स्वयं प्रेरणा से प्रतिदिन करते रहने में ही शिष्य की शोभा है| विवेकी सुविनीत शिष्य ऐसा ही करते हैं और अपने गुरुओं के हृदय में स्थान पा लेते हैं| Continue reading “अड़ियल टट्टू” »

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बन्धनमुक्त नहीं हो सकता

बन्धनमुक्त नहीं हो सकता

न यावि मोक्खो गुरुहीलणाए

गुरुजनों की अवहेलना करनेवाला कभी बन्धनमुक्त नहीं हो सकता|

परतन्त्रता बन्धन है, स्वतन्त्रता मुक्ति| सुख स्वतन्त्रता में ही रहता है, परतन्त्रता में नहीं| कहावत है कि पराधीन व्यक्ति स्वप्न में भी सुखी नहीं हो सकता| Continue reading “बन्धनमुक्त नहीं हो सकता” »

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पूछ कर लीजिये

पूछ कर लीजिये

अणुविय गेण्हियव्वं

अनुज्ञा लेकर (ही कोई वस्तु) ग्रहण करनी चाहिये

बिना पूछे किसी की कोई वस्तु उठा लेना और उसका उपयोग कर लेना चोरी का ही एक प्रकार है| कुछ लोग विनोद के लिए मित्र की वस्तु छिपा देते हैं और जब वह उसे परेशान होकर ढूँढने लगता है, तब हँसते हैं और वस्तु लौटा देते हैं| Continue reading “पूछ कर लीजिये” »

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मार्ग में घर

मार्ग में घर

संसयं खलु सो कुणइ
जो मग्गे कुणई घरं

साधना में संशय वही करता है, जो मार्ग में घर करना (ठहरना) चाहता है

मोक्ष हमारा अन्तिम लक्ष्य है और सदाचार सत्क्रिया वहॉं तक पहुँचने का मार्ग| Continue reading “मार्ग में घर” »

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गुरु विनय

गुरु विनय

जस्संतिए धम्मपयाइं सिक्खे,
तस्संतिए वेणइयं पउंजे

जिसके निकट रह कर धर्म के पद सीखे हों, उसके प्रति विनयपूर्ण व्यवहार रखना चाहिये

पद का अर्थ है – शब्द | धर्मपद का अर्थ है – ऐसे शब्द, जिनसे धर्म की शिक्षा मिलती हो| ऐसे शब्द धर्मशास्त्रों में पाये जाते हैं, इसलिए धर्मशास्त्रों की व्याख्या करने वाला धर्मगुरु है| Continue reading “गुरु विनय” »

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विद्या और आचरण

विद्या और आचरण

आहसु विज्जाचरणं पमोक्खं

विद्या और आचरण से ही मोक्ष बताया गया है

जिस प्रकार चलने के लिए चक्षु और चरण – दोनों आवश्यक हैं, उसी प्रकार मोक्ष की प्राप्ति के लिए भी ज्ञान और क्रिया दोनों आवश्यक हैं| Continue reading “विद्या और आचरण” »

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सुखद और दुःखद

सुखद और दुःखद

खणमित्तसुक्खा बहुकालदुक्खा

विषयभोग क्षणमात्र सुख देते हैं, किंतु बहुकाल पर्यन्त दुःख देते हैं

दिन के बाद रात और रात के बाद दिन अथवा अँधेरे के बाद उजाला व उजाले के बाद अँधेरा क्रम से आता रहता है, उसी प्रकार सुख के बाद दुःख और दुःख के बाद सुख का आगमन जीवन में होता रहता है – अनुकूल परिस्थितियॉं पा कर कभी हम हँसते हैं तो प्रतिकूल परिस्थितियॉं पा कर रोते भी हैं| Continue reading “सुखद और दुःखद” »

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कर्मों से कष्ट

कर्मों से कष्ट

सकम्मुणा विप्परियासुवेइ

अपने किये कर्मों से ही व्यक्ति कष्ट पाता है

दुनिया में विषमता है| कोई जन्म ले रहा है, कोई जन्म दे रहा है – कोई जी रहा है, कोई मर रहा है – कोई धन पा रहा है, कोई खो रहा है – कोई जाग रहा है, कोई सो रहा है – कोई हँस रहा है, कोई रो रहा है – कोई सुखी है, कोई दुःखी| Continue reading “कर्मों से कष्ट” »

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भगवती अहिंसा

भगवती अहिंसा

भगवती अहिंसा…. भीयाणं पि व सरणं

भगवती अहिंसा भीतों (डरे हुओं) के लिए शरण के समान है

भीत अर्थात् संकटग्रस्त डरा हुआ व्यक्ति अपनी सुरक्षा के लिए किसी समर्थ व्यक्ति की शरण ढूँढता है| शरण या आश्रय मिल जाने पर शरणार्थी सन्तुष्ट हो जाता है – निर्भय हो जाता है; वैसे ही भगवती अहिंसा का आश्रय लेने पर भी व्यक्ति सन्तुष्ट एवं निर्भय हो जाता है| Continue reading “भगवती अहिंसा” »

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