समुप्पायमजाणंता, कहं नायंति संवरं|
आस्रव को न जानने वाले संवर को कैसे जान सकते है?
आस्रव को न जानने वाले संवर को कैसे जान सकते है?
बार बार चाबुक की मार खाने वाले गलिताश्व (अड़ियल टट्टू) की तरह कर्तव्यपालन के लिए बार-बार गुरुओं के निर्देश की अपेक्षा मत रखो
गुरुजनों की अवहेलना करनेवाला कभी बन्धनमुक्त नहीं हो सकता|
अनुज्ञा लेकर (ही कोई वस्तु) ग्रहण करनी चाहिये
साधना में संशय वही करता है, जो मार्ग में घर करना (ठहरना) चाहता है
जिसके निकट रह कर धर्म के पद सीखे हों, उसके प्रति विनयपूर्ण व्यवहार रखना चाहिये
विद्या और आचरण से ही मोक्ष बताया गया है
विषयभोग क्षणमात्र सुख देते हैं, किंतु बहुकाल पर्यन्त दुःख देते हैं
अपने किये कर्मों से ही व्यक्ति कष्ट पाता है
भगवती अहिंसा भीतों (डरे हुओं) के लिए शरण के समान है