1 0 Tag Archives: जैन आगम
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कीचड़ में न फँसें

कीचड़ में न फँसें

महयं पलिगोव जाणिया, जा वि य वंदणपूयणा इहं

संसार में जो वन्दन पूजन (सन्मान) है, साधक उसे महान दलदल समझे

प्रशंसा पाने का भी एक नशा होता है| नशे में जैसे आदमी औचित्य का विचार किये बिना मनमाना काम करता रहता है; वैसे ही प्रशंसा का भूखा व्यक्ति भी औचित्य की मर्यादा भूलकर जिस कार्य से अधिक प्रशंसा मिले, वही कार्य करने लगता है| Continue reading “कीचड़ में न फँसें” »

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सत्य की आज्ञा

सत्य की आज्ञा

सच्चस्स आणाए उवट्ठिए मेहावी मारं तरइ

जो मेधावी सत्य की आज्ञा में उपस्थित रहता है, वह मृत्यु के प्रवाह को तैर जाता है

जीवन में पद-पद पर अनुशासन की आवश्यकता का अनुभव होता है| विनय या अनुशासन से रहित अविनीत एवं स्वच्छन्द व्यक्ति अपने और दूसरों के कष्ट ही बढ़ाता है| ऐसी हालत में स्वपरकल्याण की तो उससे आशा ही कैसे की जा सकती है? Continue reading “सत्य की आज्ञा” »

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क्षमापना से लाभ

क्षमापना से लाभ

खमावणयाएणं पल्हायणभावं जणयइ

क्षमापना से प्रसन्नता के भाव उत्पन्न होते हैं

यदि किसीने हमारा अपराध कर दिया हो और हम उसके बदले उसे दण्ड देने में समर्थ हों, फिर भी दण्ड न दे कर उसे छोड़ दें – क्षमा कर दें तो इससे दोनों को प्रसन्नता होगी – अपराधी को भी और अपराध्य को भी| Continue reading “क्षमापना से लाभ” »

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परलोक में

परलोक में

इहलोगे सुचिण्णा कम्मा परलोगे
सुहफल विवाग संजुत्ता भवन्ति

इस लोक में किये हुए सत्कर्म परलोक में सुखप्रद होते हैं

जिन अच्छे कार्यों का सुफल इस लोक में अर्थात् इस भव में नहीं मिल पाता, उनका सुफल अगले भव में अथवा परलोक में प्राप्त होता है| Continue reading “परलोक में” »

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पूज्य शिष्य

पूज्य शिष्य

जो छंदमाराहयइ स पुज्जो

जो इंगिताकार से स्वीकार करता है वह पूज्य बनता है

जो आवश्यकता और गुरुजनों की इच्छा को समझकर बिना कहे अपने कर्त्तव्य का पालन करता है, वह उत्तम शिष्य है| Continue reading “पूज्य शिष्य” »

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बिना पूछे न बोलें

बिना पूछे न बोलें

अपुच्छिओ न भासेज्जा, भासमाणस्स अन्तरा

बिना पूछे किसी बोलने वाले के बीच में नहीं बोलना चाहिये

सभ्यता कहती है कि यदि कोई आदमी कुछ बोल रहा हो तो जब तक उसका कथन पूर्ण नहीं हो जाता, तब तक सुननेवाले को मौन रहना चाहिये| वादविवाद अथवा शास्त्रार्थ में तो इस नियम का और भी अधिक सावधानी के साथ पालन करने का ध्यान रखना पड़ता है| Continue reading “बिना पूछे न बोलें” »

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विनय का नाशक

विनय का नाशक

माणो विणयणासणो

मान विनय का नाशक है

यहॉं मान का अर्थ-अभिमान है, सन्मान नहीं| जिस प्रकार क्रोध और प्रेम एक-साथ नहीं रह सकते; उसी प्रकार अभिमान और विनय भी एक साथ नहीं रह सकते| Continue reading “विनय का नाशक” »

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श्रेयस्कर आचरण

श्रेयस्कर आचरण

जं सेयं तं समायरे

जो श्रेय (हितकर) हो, उसीका आचरण करना चाहिये

इस चराचर जगत के अधिकांश प्राणी अपनी अदूरदर्शिता के कारण सौन्दर्य एवं माधुर्य के दास बने हुए हैं| दिन-रात वे विषयभोगों का चिन्तन करते रहते हैं| वैषयिक सुख भले ही क्षणिक हो, परन्तु उसे प्राप्त करने के प्रयत्न में जीवन का बहुमूल्य समय लगाते रहते हैं – कहना चाहिये कि व्यर्थ खोते रहते हैं| Continue reading “श्रेयस्कर आचरण” »

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वैरवृद्धि

वैरवृद्धि

परिग्गहनिविट्ठाणं वेरं तेसिं पवड्ढइ

जो परिग्रह में व्यस्त हैं, वे संसार में अपने प्रति वैर ही बढ़ाते हैं

जो अपने पास आवश्यकता से अधिक धन का संग्रह करते हैं, वे अपने चारों ओर शत्रुओं की सृष्टि करते हैं| धन संग्रह के लिए नहीं, किन्तु अपनी और दूसरों की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए होता है| यह बात परिग्रही भूल जाते हैं| Continue reading “वैरवृद्धि” »

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धन से प्रमत्त का त्राण नहीं

धन से प्रमत्त का त्राण नहीं

वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते,
इमम्मि लोए अदु वा परत्था

प्रमत्त मनुष्य धन के द्वारा न इस लोक में अपनी रक्षा कर सकता है, न परलोक में ही

वीरता से या साहस से हमारी रक्षा होती है, कायरता से नहीं| Continue reading “धन से प्रमत्त का त्राण नहीं” »

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