महयं पलिगोव जाणिया, जा वि य वंदणपूयणा इहं
संसार में जो वन्दन पूजन (सन्मान) है, साधक उसे महान दलदल समझे
संसार में जो वन्दन पूजन (सन्मान) है, साधक उसे महान दलदल समझे
जो मेधावी सत्य की आज्ञा में उपस्थित रहता है, वह मृत्यु के प्रवाह को तैर जाता है
क्षमापना से प्रसन्नता के भाव उत्पन्न होते हैं
इस लोक में किये हुए सत्कर्म परलोक में सुखप्रद होते हैं
जो इंगिताकार से स्वीकार करता है वह पूज्य बनता है
बिना पूछे किसी बोलने वाले के बीच में नहीं बोलना चाहिये
मान विनय का नाशक है
जो श्रेय (हितकर) हो, उसीका आचरण करना चाहिये
जो परिग्रह में व्यस्त हैं, वे संसार में अपने प्रति वैर ही बढ़ाते हैं
प्रमत्त मनुष्य धन के द्वारा न इस लोक में अपनी रक्षा कर सकता है, न परलोक में ही