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प्रशंसा से मोह

प्रशंसा से मोह

कसोक्खेहिं सद्देहिं पेमं नाभिनिवेसए

कानों को सुख देने वाले (मधुर) शब्दों में आसक्ति नहीं रखनी चाहिये

यदि हम अच्छे काम करेंगे तो लोग हमारी प्रशंसा करेंगेही| प्रशंसा के शब्द बहुत मीठे लगते हैं – कानों को प्रिय लगते हैं; परन्तु कर्णप्रिय शब्दों में हमारी आसक्ति नहीं होनी चाहिये, अन्यथा सम्भव यही है कि हम धूर्तों से धोखा खा जायें| Continue reading “प्रशंसा से मोह” »

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आत्मवत् देखो

आत्मवत् देखो

आयओ बहिया पास

अपने समान ही बाहर (दूसरों को) देख

ज्ञानियों ने पापों से – सब प्रकार के दुराचरणों से बचने का एक अत्यन्त सरल उपाय सुझाया है, जिसके द्वारा हम पुण्य-पाप का-अहिंसा-हिंसाका-धर्माधर्म का निर्णय भी कर सकते हैं और बुराइयों से बच भी सकते हैं| Continue reading “आत्मवत् देखो” »

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कर्मरज की सफाई

कर्मरज की सफाई

विहुणाहि रयं पुरे कडं

पूर्व सञ्चित कर्म रूप रज को साफ करो

कुत्ता भी जब किसी स्थान पर बैठता है, तब उस स्थान की सफाई कर देता है| यह प्रवृत्ति बतलाती है कि स्वच्छता प्राणियों को प्रिय है|यदि कुछ दिनों तक कपड़े न धोये जायें; तो वे कितने गन्दे हो जाते हैं ? कितने बुरे लगने लगते हैं ? Continue reading “कर्मरज की सफाई” »

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भक्तामर स्तोत्र – श्लोक 4

वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र ! शशांककान्तान्
कस्ते क्षमः सुरगुरु-प्रतिमोऽपि बुद्धया ?
कल्पान्तकाल – पवनोद्धत – नक्रचक्रं
को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम् ? ||4||

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Wallpaper #1

All Souls are Alike and Potentailly Divine

Standard Screen Widescreen
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मनडुं किमही न बाजे

Listen to मनडुं किमही न बाजे

श्री कुंथुनाथ जिन स्तवन

कुंथुजिन! मनडुं किमही न बाजे,
हो कुंथुजिन! मनडुं किमही न बाजे;
जिम जिम जतन करीने राखुं,
तिम तिम अलगुं भाजे हो

…कुं.१

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इसी जीवन में

इसी जीवन में

इहलोगे सुचिण्णा कम्मा
इहलोगे सुहफल विवाग संजुत्ता भवन्ति

इस लोक में किये हुए सत्कर्म इस लोक में सुखप्रद होते हैं

इस लोक में अर्थात् इसी भव में – इसी जीवन में किये हुए अच्छे कार्यों का सुफल इसी लोक में मिल जाता है| Continue reading “इसी जीवन में” »

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Description of Vaitadhya

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स्वाध्याय से लाभ

स्वाध्याय से लाभ

सज्झाएणं नाणावरणिज्जं कम्मं खवेइ

स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है

स्वाध्याय का साधारण अर्थ है – वीतरागप्रणीत शास्त्रों का अध्ययन करना| इससे उन कर्मों का क्षय होता है, जो ज्ञान पर आवरण डाले हुए हैं| ज्यों-ज्यों हम स्वाध्याय करते जायेंगे, त्यों-त्यों ज्ञानीवरणीय कर्म क्षीण होते जायेंगे और धीरे-धीरे हमें पूर्ण ज्ञान या सर्वज्ञत्व प्राप्त हो जायेगा| Continue reading “स्वाध्याय से लाभ” »

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तुम्हारे हाथ से डूब जाऊं तो भी उबर जाऊँ

तुम्हारे हाथ से डूब जाऊं तो भी उबर जाऊँ
अब तु ले चलो उस पार| अपने से तो यह न हो सकेगा| यह भवसागर बड़ा है| दूसरा किनारा दिखाई भी नहीं पड़ता है| Continue reading “तुम्हारे हाथ से डूब जाऊं तो भी उबर जाऊँ” »

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