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श्रुतशील-तप
सुयसीलतवो जलं
कषाय अग्नि है तो श्रुत, शील और तप को जल कहा गया है
वीर जिनेश्वर चरणे लागुं
श्री महावीर जिन स्तवन
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प्रार्थना में मॉंग न हो
प्रार्थना का मार्ग समर्पण का मार्ग है| प्रार्थना याचना नहीं अर्पणा है| जिससे हृदय के द्वार स्वयमेव खुलते हैं| सूरज का उदय हो और फूल न खिलें तो समझना कि वह फूल नहीं पत्थर है… परमात्मा की प्रार्थना हो और हमारा हृदय न खिले तो जानना चाहिए वह हृदय नहीं पत्थर है| प्रार्थना में जब मॉंग आती है तो भक्त उपासक न रहकर याचक बन जाता है| प्रार्थना एक निष्काम कर्म है| जब भक्त तन्मय होकर प्रार्थना में लग जाता है तो उसकी सारी इच्छाएं स्वतः समाप्त हो जाती है| एक भक्त की सच्ची प्रार्थना इस प्रकार होनी चाहिए…|
करो रक्षा विपत्ति से न ऐसी प्रार्थना मेरी|
विपत्ति से भय नहीं खाऊँ प्रभु ये प्रार्थना मेरी॥
मिले दुःख ताप से शान्ति न ऐसी प्रार्थना मेरी|
सभी दुःखों पर विजय पाऊँ, प्रभु ये प्रार्थना मेरी॥
सम्बन्धों को संभाले
Water is precious
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चित्रक और संभूति चंडाल बने
जंगल से एक मुनि गुज़र रहे थे| रास्ता भूल जाने के कारण दोपहर के समय बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े| गाय चराने के लिए आये हुये चार ग्वालों ने इस दृश्य को दूर से देखा| वे नज़दीक आये| मुनि बेहोश थे| होठ सूख गए थे| चेहरा कुम्हला गया था| तृषा का अनुमान कर उन्होंने गाय को दुहकर मुँह में दूध डाला| इससे मुनि होश में आये| कुछ समय के बाद मुनिश्री ने चारों को समझाने का प्रयास करते हुए कहा कि संसाररूपी जंगल में उनकी आत्मा भटक रही हैं| उस दुःख से पार उतरने के लिये एकमात्र साधन है चारित्र धर्म| इस प्रकार का बोध दिया| चारों ने प्रतिबोध पाकर चारित्र ग्रहण किया| उनमें से दो आत्माएं तो उसी भव में केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में चली गई| Continue reading “चित्रक और संभूति चंडाल बने” »
दुलह नारी तुं बडी बावरी
दुलह नारी तुं बडी बावरी
पिया जागे तुं सोवे
पिया चतुर हम निपट अग्यानी
न जानु क्या होवे?
न जानु क्या होवे?
प्रायश्चित देने वाले गुरु कौन होते हैं?
आलोचना का प्रायश्चित देने वाले गुरु पांच व्यवहारों के जानकार होते हैं|
आगम व्यवहारी :- अर्थात् केवलज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, १४, १०, ९ पूर्वी हो, उनके पास प्रायश्चित लेना चाहिए| Continue reading “प्रायश्चित देने वाले गुरु कौन होते हैं?” »
Stop exploitation of all kind
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