तपश्चरण तलवार की धार पर चलने के समान दुष्कर है
दुष्कर तपस्या
पाप श्रमण
जो खा-पीकर आराम से सोता है, वह पापश्रमण कहलाता है
कर्त्ता – भोक्ता
आत्मा ही सुख दुःख का कर्त्ता और भोक्ता है
हम अच्छे कार्य करते हैं; तो अपने लिए सुख का निर्माण करते हैं और यदि बुरे कार्य करते हैं; तो दुःख का निर्माण करते हैं| इस प्रकार हम स्वयं ही सुख-दुःख के निर्माता हैं, बनाने वाले हैं| Continue reading “कर्त्ता – भोक्ता” »
क्रुद्ध न हों
अनुशासन से क्रुद्ध नहीं होना चाहिये
संयम और सुख
अस्सिं लोए परत्थ य
अपने पर नियन्त्रण रखनेवाला ही इस लोक तथा परलोक में सुखी होता है
सौन्दर्य का नाश
हे राजन्! बुढ़ापा मनुष्य के सौन्दर्य को नष्ट कर देता है
न भाषा न पांडित्य
कुओ विज्जाणुसासणं
विचित्र (लच्छेदार) भाषाएँ भी (दुराचारी की दुर्गति से) रक्षा नहीं कर सकतीं, फिर विद्यानुशासन (पाण्डित्य) की तो बात ही क्या?
मित्र-शत्रु कौन ?
सदाचार-प्रवृत्त आत्मा मित्र है और दुराचारप्रवृत शत्रु
बुद्धिवाद
बुद्धि ही धर्म का निर्णय कर सकती है
क्षमापना से लाभ
क्षमापना से प्रसन्नता के भाव उत्पन्न होते हैं