संसयं खलु सो कुणइ
जो मग्गे कुणई घरं
जो मग्गे कुणई घरं
साधना में संशय वही करता है, जो मार्ग में घर करना (ठहरना) चाहता है
साधना में संशय वही करता है, जो मार्ग में घर करना (ठहरना) चाहता है
विषयभोग क्षणमात्र सुख देते हैं, किंतु बहुकाल पर्यन्त दुःख देते हैं
धर्म द्वीप है, प्रतिष्ठा है, गति है और उत्तम शरण है
प्रिय करनेवाला और प्रिय बोलनेवाला अपनी शिक्षा प्राप्त करने में समर्थ होता है
तू स्वयं अनाथ है, तो फिर तू दूसरे का नाथ कैसे हो सकता है ?
धर्मधुरा खींचने के लिए धन की क्या आवश्यकता है? वहॉं तो सदाचार ही आवश्यक है
इस संसार में जो निःस्पृह है, उसके लिए कुछ भी दुष्कर नहीं है
अज्ञ जीव विवश होकर अन्धकाराच्छदन
आसुरी गति को प्राप्त होते हैं
प्रिय हो या अप्रिय-सबको समभाव से सहना चाहिये
अपने को जीतने पर सबको जीत लिया जाता है