अतिवेलं न हसे मुणी
मुनि कभी मर्यादा से अधिक न हँसे
मुनि कभी मर्यादा से अधिक न हँसे
सन्मार्ग का तिरस्कार करके अल्प सुख (विषयसुख) के लिए अनन्त सुख (मोक्षसुख) का विनाश मत कीजिये
जो समय पर अपना काम कर लेते हैं, वे बाद में पछताते नहीं है
आस्रव को न जानने वाले संवर को कैसे जान सकते है?
विद्या और आचरण से ही मोक्ष बताया गया है
अपने किये कर्मों से ही व्यक्ति कष्ट पाता है
कोई किसी दूसरे के दुःख को बाँट नहीं सकता
बुद्धिमान को कभी उपहास नहीं करना चाहिये
थोड़े में कही जानेवाली बात को व्यर्थ ही लम्बी न करें
सोचकर बोलें