जो अनन्यदर्शी होता है, वह अनन्याराम होता है और जो अनन्याराम होता है, वह अनन्यदर्शी होता है
अनन्यदर्शी बनें
एकज्ञ-सर्वज्ञ
जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ||
जो एक को जानता है, वह सबको जानता है और जो सबको जानता है, वह एक को जानता है
जिसे आत्मस्वरूप का सम्यग्ज्ञान हो जाता है, वह अनात्मतत्त्वों में रमण नहीं करता; क्यों कि वह आत्मभि पदार्थों के स्वरूप को – उनकी क्षणिकताको भी जान लेता है| Continue reading “एकज्ञ-सर्वज्ञ” »
सम्यक्त्व के अभाव में
सम्यक्त्व के अभाव में चारित्र नहीं हो सकता
मूर्त्त या अमूर्त्त
अमुत्तभावा वि य होइ निच्चं
आत्मा आदि अमूर्त्त तत्त्व इन्द्रियग्राह्य नहीं होते और जो अमूर्त्त होते हैं, वे नित्य भी होते हैं
समय पर पूरा कीजिये
न पच्छा परितप्पए
जो समय पर अपना काम कर लेते हैं, वे बाद में पछताते नहीं है
बोलने की विधि
पुट्ठो, वा नालियं वए
बिना पूछे कुछ भी नहीं बोलना चाहिये और पूछे जाने पर भी असत्य नहीं बोलना चाहिये
ज्ञान और सदाचार
सीलवंता बहुस्सुया
ज्ञानी और सदाचारी मृत्युपर्यन्त त्रस्त (भयाक्रान्त) नहीं होते
आस्रव-संवर
आस्रव को न जानने वाले संवर को कैसे जान सकते है?
अड़ियल टट्टू
बार बार चाबुक की मार खाने वाले गलिताश्व (अड़ियल टट्टू) की तरह कर्तव्यपालन के लिए बार-बार गुरुओं के निर्देश की अपेक्षा मत रखो
बन्धनमुक्त नहीं हो सकता
गुरुजनों की अवहेलना करनेवाला कभी बन्धनमुक्त नहीं हो सकता|