ए खलु कामभोगा, ओ अहमसि
कामभोग अन्य हैं, मैं अन्य हूँ
कामभोग अन्य हैं, मैं अन्य हूँ
मैं अकेला हूँ – मेरा कोई नहीं है और मैं भी किसी का नहीं हूँ
प्राणवध चण्ड है, रौद्र है, क्षुद्र है, अनार्य है, करुणारहित है, क्रूर है, भयंकर है
मूर्च्छा को ही परिग्रह कहा गया है
जो दूसरे मनुष्य का परिभव (तिरस्कार) करता है, वह संसार में भटकता रहता है
सन्तोषी पाप नहीं करते
सिंह के समान निर्भीक; केवल शब्दों से न डरिये
सबको जीवन प्रिय है, किसीके प्राणों का अतिपात नहीं चाहिये
करणसत्य में रहनेवाला जीव जैसा बोलता है, वैसा ही करता है