कम्ममूलं च जं छणं
जो क्षण है, वह कर्म का मूल है
जो क्षण है, वह कर्म का मूल है
अज्ञ पापों पर घमण्ड करता है
कुशल व्यक्ति को प्रमाद नहीं करना चाहिये
पहले ज्ञान, फिर दया
कषाय अग्नि है तो श्रुत, शील और तप को जल कहा गया है
श्रद्धा अत्यन्त दुर्लभ है
एक कण से द्रोण-भर पाक की और एक गाथा से कवि की परीक्षा हो जाती है
किसी के साथ वैर-विरोध मत करो
शस्त्र एक से एक बढ़कर हैं, परन्तु अशस्त्र (अहिंसा) एक से एक बढ़कर नहीं है
न अपनी आशातना करो, न दूसरों की