मोहं जंति नरा असंवुडा
असंवृत मनुष्य मोहित हो जाते हैं
असंवृत मनुष्य मोहित हो जाते हैं
वही वीर प्रशंसनीय बनता है, जो बद्ध को प्रतिमुक्त करता है
आत्मा ही सुख दुःख का कर्त्ता और भोक्ता है
हम अच्छे कार्य करते हैं; तो अपने लिए सुख का निर्माण करते हैं और यदि बुरे कार्य करते हैं; तो दुःख का निर्माण करते हैं| इस प्रकार हम स्वयं ही सुख-दुःख के निर्माता हैं, बनाने वाले हैं| Continue reading “कर्त्ता – भोक्ता” »
आतंकदर्शी पाप नहीं करता
ज्ञानहीन व्यक्ति क्या करेगा? वह पुण्य पाप को कैसे जानेगा?
अनुशासन से क्रुद्ध नहीं होना चाहिये
लाभ होने पर घमण्ड में फूलना नहीं चाहिये और लाभ न होने पर शोक नहीं करना चाहिये
क्रोध प्रीति का नाशक है
अपने पर नियन्त्रण रखनेवाला ही इस लोक तथा परलोक में सुखी होता है