1 0 Tag Archives: जैन आगम
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असंवृत्तों का मोह

असंवृत्तों का मोह

मोहं जंति नरा असंवुडा

असंवृत मनुष्य मोहित हो जाते हैं

जो असंयमी हैं – इन्द्रियों को जो अपने वश में नहीं रख सकते – मन पर जिनका बिल्कुल अधिकार नहीं है; ऐसे लोग विषयों के प्रति शीघ्र आकर्षित हो जाते हैं| Continue reading “असंवृत्तों का मोह” »

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बन्धनमुक्त करें

बन्धनमुक्त करें

एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए

वही वीर प्रशंसनीय बनता है, जो बद्ध को प्रतिमुक्त करता है

तलवार से मनुष्य अपने हाथ-पॉंव भी काट सकता है और दूसरों के बन्धन भी – हाथों से वह दूसरों को तमाचे भी मार सकता है और उनकी सहायता भी कर सकता है| इसी प्रकार उसमें जो शक्ति है, उसका वह सदुपयोग भी कर सकता है और दुरुपयोग भी | शक्ति भी तलवार की तरह एक हथियार है – एक साधन है| प्रशंसा और निन्दा दोनों उससे प्राप्त की जा सकती हैं| Continue reading “बन्धनमुक्त करें” »

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कर्त्ता – भोक्ता

कर्त्ता   भोक्ता

अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण या सुहाण च

आत्मा ही सुख दुःख का कर्त्ता और भोक्ता है

सुख और दुःख अपने ही कार्यों एवं विचारों के फल हैं; दूसरों के नहीं|

हम अच्छे कार्य करते हैं; तो अपने लिए सुख का निर्माण करते हैं और यदि बुरे कार्य करते हैं; तो दुःख का निर्माण करते हैं| इस प्रकार हम स्वयं ही सुख-दुःख के निर्माता हैं, बनाने वाले हैं| Continue reading “कर्त्ता – भोक्ता” »

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आतङ्कदर्शी

आतङ्कदर्शी

आयंकदंसी न करेइ पावं

आतंकदर्शी पाप नहीं करता

संसार में ऐसा कौन प्राणी है, जो दुःखी न हो? कोई न कोई दुःख प्रत्येक जीव के पीछे लगा ही रहता है| जन्म का, मृत्यु का और बुढ़ापे के दुःख तो अनिवार्य है ही; जिस का सबको अनुभव करना पड़ता है; परन्तु इसके अतिरिक्त रोग, शोक, वियोग, अपमान, चोट, जलन, कटु शब्द, करूपता, दुर्गन्ध, बेस्वाद भोजन, कठोर स्पर्श, बन्धन, निर्धनता, तिरस्कार, मालिक की फटकार, दौड़धूप आदि सैकड़ों दुःख हैं; जिनसे प्राणी निरन्तर कष्ट पा रहे हैं, व्याकुलता का अनुभव कर रहे हैं, छटपटा रहे हैं| Continue reading “आतङ्कदर्शी” »

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अज्ञानी क्या करेगा ?

अज्ञानी क्या करेगा ?

अन्नाणी किं काही, किं जानाहि सेयपावगं

ज्ञानहीन व्यक्ति क्या करेगा? वह पुण्य पाप को कैसे जानेगा?

द्रव्यगुण पर्यायविषयक बोध को ज्ञान कहते हैं| ज्ञान का अभाव अज्ञान है| अज्ञान के तीन प्रकार हैं – देश अज्ञान, सर्व अज्ञान और भाव अज्ञान| Continue reading “अज्ञानी क्या करेगा ?” »

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क्रुद्ध न हों

क्रुद्ध न हों

अणुसासिओ न कुप्पिज्जा

अनुशासन से क्रुद्ध नहीं होना चाहिये

माता-पिता एवं गुरुजन हमसे बड़े होते हैं – अधिक अनुभवी होते हैं| वे हमें सुधारने के लिए – कुमार्ग से हटा कर हमें सुमार्ग पर ले जाने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहते हैं| इस प्रयत्न के सिलसिले में अनेक बार वे हमारी आलोचना करते हैं- अनेक बार हमारे दोष बताते हैं और उनसे बचने का उपदेश देते हैं| बार-बार एक ही अपराध करने पर वे हमें डॉंट-फटकार भी बताते हैं अर्थात् ताड़ना-तर्जना भी करते हैं| Continue reading “क्रुद्ध न हों” »

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लाभ – अलाभ

लाभ   अलाभ

लाभुत्ति न मज्जिज्जा, अलाभुत्ति न सोइज्जा

लाभ होने पर घमण्ड में फूलना नहीं चाहिये और लाभ न होने पर शोक नहीं करना चाहिये

प्रयत्न के दो ही परिणाम होते हैं – लाभ या अलाभ| प्रयत्न सफल होने पर लाभ होता है और असफल होने पर अलाभ| लाभ से प्रयत्न की प्रेरणा मिलती हैऔर अलाभ से प्रयत्न में शिथिलता आती है; परन्तु इसके साथ ही साथ दोनों अवस्थाओं में एक-एक दुष्परिणाम भी होता है| Continue reading “लाभ – अलाभ” »

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प्रेम का नाशक

प्रेम का नाशक

कोहो पीइं पणासेइ

क्रोध प्रीति का नाशक है

प्रेम और क्रोध दोनों किसी स्थान पर एक साथ नहीं रह सकते | जब क्रोध होगा, प्रेम नहीं होगा और जब प्रेम होगा, क्रोध नहीं होगा| दोनों गुण एक दूसरे के विरोधी हैं – एक दूसरे के नाशक हैं| Continue reading “प्रेम का नाशक” »

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अभयदान

अभयदान

दाणाण सेट्ठं अभयप्पयाणं

अभयदान श्रेष्ठ दान है

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संयम और सुख

संयम और सुख

अप्पं दंतो सुही होई,
अस्सिं लोए परत्थ य

अपने पर नियन्त्रण रखनेवाला ही इस लोक तथा परलोक में सुखी होता है

संयम सुख का स्रोत्र है| अपनी समस्त मनोवृत्तियों पर अंकुश रखना संयम है| मनोवृत्तियॉं चंचल होती हैं – क्षणिक होती हैं| उन पर अंकुश कौन रख सकता है? Continue reading “संयम और सुख” »

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