कोहविजएणं खंतिं जणयइ
क्रोधविजय क्षमा का जनक है
क्रोधविजय क्षमा का जनक है
जीवन और रूप विद्युत् की गति के समान चंचल होते हैं
मेधावी साधक को आत्मपरिज्ञान के द्वारा यह निश्चय करना चाहिये कि मैंने पूर्वजीवन में प्रमादवश जो कुछ भूल की है, उसे अब कभी नहीं करूँगा
माया को ऋजुता से और लोभ को सन्तोष से जीतें
अज्ञ अभिमान करते हैं
जैसे पुण्यवान को कहा जाता है, वैसे ही तुच्छ को और जैसे तुच्छ को कहा जाता है, वैसे ही पुण्यवान को
हितकर सच्ची बात कहनी चाहिये
चढ़ाई के मार्ग में बूढे बैलों की तरह साधनामार्ग की कठिनाई में अज्ञ लोग खि होते हैं
जो एक अपने को नमा लेता है; वह बहुतों को नमा लेता है
अध्ययन किये गये वेद रक्षा नहीं कर सकते