1 0 Tag Archives: जैन आगम
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क्षमा का जन्म

क्षमा का जन्म

कोहविजएणं खंतिं जणयइ

क्रोधविजय क्षमा का जनक है

अपराधी चाहता है कि यदि उसे क्षमा कर दिया जाये तो कितना अच्छा रहे| यदि पापी अपने पापों के लिए लज्जित हो रहा हो – अपने किये हुए अपराधों के लिए उसके हृदय में वास्तविक पश्‍चात्ताप हो रहा हो; तो उसे अवश्य क्षमा कर देना चाहिये| Continue reading “क्षमा का जन्म” »

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जीवन और रूप

जीवन और रूप

जीवियं चेव रूवं च, विज्जुसंपाय चंचलं

जीवन और रूप विद्युत् की गति के समान चंचल होते हैं

जीवन क्षणभंगुर है | पता नहीं जो सॉंस छोड़ी जा रही है, वह लौट कर भी आयेगी या नहीं| यह जीवन बिजली की चंचल गति के समान चंचल है| क्षण-भर के लिए अपनी चमक दिखा कर बिजली जिस प्रकार लुप्त हो जाती है; उसी प्रकार जीवन भी कुछ वर्षों तक अपनी झलक दिखाकर समाप्त हो जाता है| इसलिए जब तक जीवन विद्यमान है; अच्छे कार्यों द्वारा उसका सदुपयोग कर लेना चाहिये| Continue reading “जीवन और रूप” »

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भूल दुहराऊँगा नहीं !

भूल दुहराऊँगा नहीं !

तं परिण्णाय मेहावी, इयाणिं णो,
जमहं पुव्वमकासो पमाएणं

मेधावी साधक को आत्मपरिज्ञान के द्वारा यह निश्‍चय करना चाहिये कि मैंने पूर्वजीवन में प्रमादवश जो कुछ भूल की है, उसे अब कभी नहीं करूँगा

कहते हैं, व्यक्ति ठोकरों से ही सीखता है| प्रत्येक ठोकर उसे कुछ-न-कुछ शिक्षा दे जाती है – सिखा जाती है; परन्तु उस शिक्षा को ग्रहण करना या न करना व्यक्ति की अपनी इच्छा पर निर्भर है| जो मेधासम्प है – बुद्धिमान है, उसीमें ऐसी इच्छा की उत्पत्ति और निवास सम्भव है| Continue reading “भूल दुहराऊँगा नहीं !” »

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सरलता और सन्तोष

सरलता और सन्तोष

माया मज्जवभावेणं,
लोहं सन्तोसओ जिणे

माया को ऋजुता से और लोभ को सन्तोष से जीतें

सरल और कुटिल परस्पर विलोम शब्द है| सरलता सम्प व्यक्ति पर लोग अखण्ड विश्‍वास करते हैं और कुटिलता सम्प व्यक्ति पर सर्वथा अविश्‍वास | जहॉं विश्‍वास है, वहीं प्रेम है और जहॉं प्रेम है, वहीं सुख है| Continue reading “सरलता और सन्तोष” »

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अज्ञ अभिमान करते हैं

अज्ञ अभिमान करते हैं

बालजणो पगभई

अज्ञ अभिमान करते हैं

विद्या से विनय पैदा होना चाहिये| बिना विनय के विद्या में वृद्धि नहीं होगी और प्राप्त विद्या भी धीरे-धीरे क्षीण होने लगेगी| विनय से ही विद्या की शोभा होती है| अतः अपनी विद्वत्ता की शोभा के लिए भी इस विनय नामक गुण को अपनाने की आवश्यकता है| Continue reading “अज्ञ अभिमान करते हैं” »

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समान भाव रहें

समान भाव रहें

जहा पुण्णस्स कत्थई, तहा तुच्छस्स कत्थई|
जहा तुच्छस्स कत्थई, तहा पुण्णस्स कत्थई|

जैसे पुण्यवान को कहा जाता है, वैसे ही तुच्छ को और जैसे तुच्छ को कहा जाता है, वैसे ही पुण्यवान को

निःस्पृह उपदेशक जैसा उपदेश धनवान को देता है, वैसा ही दरिद्र को भी देता है और जैसा उपदेश दरिद्र को देता है, वैसा ही धनवान को भी देता है| मतलब यह कि उसकी दृष्टि में अमीर-गरीब का कोई भेदभाव नहीं रहता| वह सबको समान उपदेश देता है| Continue reading “समान भाव रहें” »

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वाणी कैसी हो?

वाणी कैसी हो?

भासियव्वं हियं सच्चं

हितकर सच्ची बात कहनी चाहिये

हम जो कुछ बोलें, उससे अपना या दूसरों का भला होना चाहिये| यदि ऐसा नहीं होता तो समझना चाहिये कि हमारी वाणी व्यर्थ गयी| Continue reading “वाणी कैसी हो?” »

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बूढे बैल

बूढे बैल

तत्थ मंदा विसीयंति, उज्जाणंसि जरग्गवा

चढ़ाई के मार्ग में बूढे बैलों की तरह साधनामार्ग की कठिनाई में अज्ञ लोग खि होते हैं

साधना के मार्ग में बहुत धीरज से चलते रहने की आवश्यकता होती है| उसमें संकट आते हैं – कठिनाइयॉं आती हैं – बाधाएँ आती हैं| बुद्धिमान साधक यह सोचते हैं कि यह सारा उपद्रव हमारे धैर्य की परीक्षा के लिए हो रहा है| Continue reading “बूढे बैल” »

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विनय

विनय

जे एगं नाम से बहुं नामे

जो एक अपने को नमा लेता है; वह बहुतों को नमा लेता है

यदि हम चाहते हैं कि दूसरे लोग हमारा विनय करें; तो हमें भी दूसरों का विनय करना चाहिये| जो घमण्ड करता है, वह सबसे घृणा पाता है – उसे कहीं भी आदर नहीं मिल सकता| Continue reading “विनय” »

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वेदों का अध्ययन

वेदों का अध्ययन

वेया अहीया न भवन्ति ताणं

अध्ययन किये गये वेद रक्षा नहीं कर सकते

अमुक व्यक्ति वेदों का पारायण करता है – अध्ययन करता है; इसलिए आदरणीय है – पूज्य है – पवित्र है – ऐसा मानना भ्रमपूर्ण है| क्यों? ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि आदरणीयता, पूज्यता एवं पवित्रता का सम्बन्ध सच्चरित्रता से है, त्याग से है, परोपकार से है, सदाचार से है; वेदों के अध्ययन से नहीं| Continue reading “वेदों का अध्ययन” »

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