वान्त पीना चाहते हो ? इससे तो तुम्हारा मर जाना अच्छा है
विषय-विरक्ति
अनेकान्तवादी बनें
स्याद्वाद से युक्त वचनों का प्रयोग करना चाहिये
‘स्याद्वाद’ एक दार्शनिक सिद्धान्त है| ‘स्यात्’ का अर्थ अपेक्षा है; इसलिए इसे सापेक्षवाद भी कह सकते हैं| वैसे किसी एक बात का आग्रह न होने से यह ‘अनेकान्तवाद’ के नाम से ही दुनिया में अधिक प्रसिद्ध है| Continue reading “अनेकान्तवादी बनें” »
ज्ञान का सार
जं न हिंसइ किंचणं
अहिंसा या दया एक धर्म है; किन्तु इसका सम्यक् परिपालन करने से पहले ज्ञान होना आवश्यक है
सम्यग्दृष्टि में स्थिरता
सम्यग्दृष्टि साधक को सत्यदृष्टि का अपलाप नहीं करना चाहिये
सहिष्णुता
प्रिय हो या अप्रिय-सबको समभाव से सहना चाहिये
आत्मविजय
अपने को जीतने पर सबको जीत लिया जाता है
अप्रमत्त या प्रमत्त
सव्वओ अप्पमत्तस्स नत्थि भयं
मत्त को सब ओर से भय रहता है, किन्तु अप्रमत्त को किसी भी ओर से भय नहीं रहता
बोधिरत्न की सुदुर्लभता
होइ सुदुल्लहा तेसिं
जो आत्माएँ बहुत अधिक कर्मों से लिप्त हैं, उनके लिए बोधि अत्यन्त दुर्लभ है
धर्म कहॉं टिकता है ?
ऋजु या सरल आत्मा की शुद्धि होती है और शुद्ध आत्मा में ही धर्म ठहरता है
दूर से ही त्याग
कुशील (दुराचार) बढ़ानेवाले कारणों का दूर से ही त्याग करना चाहिये