1 0
post icon

पूज्य शिष्य

पूज्य शिष्य

जो छंदमाराहयइ स पुज्जो

जो इंगिताकार से स्वीकार करता है वह पूज्य बनता है

जो आवश्यकता और गुरुजनों की इच्छा को समझकर बिना कहे अपने कर्त्तव्य का पालन करता है, वह उत्तम शिष्य है| Continue reading “पूज्य शिष्य” »

Leave a Comment
post icon

श्रीफल का महत्त्व

श्रीफल का महत्त्व

श्रीफल रखुं मैं हाथ में, इसमें है पानी भरा
प्रिय जमाई आप रखना, मन को सदा गहरा भरा
गृहस्थ जीवन भी एक समस्या है| दो बर्तन हो वहॉं आपस में टकराने की संभावना रहती है, उसी प्रकार वरवधू की सौम्य प्रकृति के अभाव में परस्पर अनबन हो सकती है, किन्तु मनमुटाव नहीं| Continue reading “श्रीफल का महत्त्व” »

Leave a Comment
post icon

बिना पूछे न बोलें

बिना पूछे न बोलें

अपुच्छिओ न भासेज्जा, भासमाणस्स अन्तरा

बिना पूछे किसी बोलने वाले के बीच में नहीं बोलना चाहिये

सभ्यता कहती है कि यदि कोई आदमी कुछ बोल रहा हो तो जब तक उसका कथन पूर्ण नहीं हो जाता, तब तक सुननेवाले को मौन रहना चाहिये| वादविवाद अथवा शास्त्रार्थ में तो इस नियम का और भी अधिक सावधानी के साथ पालन करने का ध्यान रखना पड़ता है| Continue reading “बिना पूछे न बोलें” »

Leave a Comment
post icon

विनय का नाशक

विनय का नाशक

माणो विणयणासणो

मान विनय का नाशक है

यहॉं मान का अर्थ-अभिमान है, सन्मान नहीं| जिस प्रकार क्रोध और प्रेम एक-साथ नहीं रह सकते; उसी प्रकार अभिमान और विनय भी एक साथ नहीं रह सकते| Continue reading “विनय का नाशक” »

Leave a Comment
post icon

साध्वी मलयसुन्दरी

Sorry, this article is only available in English. Please, check back soon. Alternatively you can subscribe at the bottom of the page to recieve updates whenever we add a hindi version of this article.

Leave a Comment
post icon

श्रेयस्कर आचरण

श्रेयस्कर आचरण

जं सेयं तं समायरे

जो श्रेय (हितकर) हो, उसीका आचरण करना चाहिये

इस चराचर जगत के अधिकांश प्राणी अपनी अदूरदर्शिता के कारण सौन्दर्य एवं माधुर्य के दास बने हुए हैं| दिन-रात वे विषयभोगों का चिन्तन करते रहते हैं| वैषयिक सुख भले ही क्षणिक हो, परन्तु उसे प्राप्त करने के प्रयत्न में जीवन का बहुमूल्य समय लगाते रहते हैं – कहना चाहिये कि व्यर्थ खोते रहते हैं| Continue reading “श्रेयस्कर आचरण” »

Leave a Comment
post icon

Coronation as King

Sorry, this article is only available in English. Please, check back soon. Alternatively you can subscribe at the bottom of the page to recieve updates whenever we add a hindi version of this article.

Leave a Comment
post icon

वैरवृद्धि

वैरवृद्धि

परिग्गहनिविट्ठाणं वेरं तेसिं पवड्ढइ

जो परिग्रह में व्यस्त हैं, वे संसार में अपने प्रति वैर ही बढ़ाते हैं

जो अपने पास आवश्यकता से अधिक धन का संग्रह करते हैं, वे अपने चारों ओर शत्रुओं की सृष्टि करते हैं| धन संग्रह के लिए नहीं, किन्तु अपनी और दूसरों की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए होता है| यह बात परिग्रही भूल जाते हैं| Continue reading “वैरवृद्धि” »

Leave a Comment
post icon

धन से प्रमत्त का त्राण नहीं

धन से प्रमत्त का त्राण नहीं

वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते,
इमम्मि लोए अदु वा परत्था

प्रमत्त मनुष्य धन के द्वारा न इस लोक में अपनी रक्षा कर सकता है, न परलोक में ही

वीरता से या साहस से हमारी रक्षा होती है, कायरता से नहीं| Continue reading “धन से प्रमत्त का त्राण नहीं” »

Leave a Comment
post icon

आन्तरिक शुद्धि

आन्तरिक शुद्धि

उदगस्स फासेण सिया य सिद्धी,
सिज्झंसु पाणा बहवे दगंसि

यदि जलस्पर्श (स्नान) से ही सिद्धि प्राप्त होती तो बहुत-से जलजीव सिद्ध हो जाते

बहुत-से लोग स्नान करके समझते हैं कि उन्होंने बहुत बड़ी आत्मसाधना कर ली है, परन्तु ऐसे लोग अन्धविश्‍वास के शिकार हैं| वे नहीं समझते कि शारीरिक शुद्धि और आत्मिकशुद्धि में बहुत बड़ा अन्तर है| Continue reading “आन्तरिक शुद्धि” »

Leave a Comment
Page 65 of 67« First...102030...6364656667