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बूढे बैल

बूढे बैल

तत्थ मंदा विसीयंति, उज्जाणंसि जरग्गवा

चढ़ाई के मार्ग में बूढे बैलों की तरह साधनामार्ग की कठिनाई में अज्ञ लोग खि होते हैं

साधना के मार्ग में बहुत धीरज से चलते रहने की आवश्यकता होती है| उसमें संकट आते हैं – कठिनाइयॉं आती हैं – बाधाएँ आती हैं| बुद्धिमान साधक यह सोचते हैं कि यह सारा उपद्रव हमारे धैर्य की परीक्षा के लिए हो रहा है| Continue reading “बूढे बैल” »

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Description of a Samavasarana

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Attainment of Disgust with Existence

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Eleventh Incarnation as Vajranabha – Part 2

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रत्नत्रय

रत्नत्रय

सुदेव सुगुरु सुधर्म आदरु
जैन धर्म में देव, गुरु, धर्म का बड़ा ही महत्त्व है| देव वे होते हैं जो वीतराग बन चुके हैं| गुरु वे हैं जो वीतराग बनने की साधना करते हैं और आत्मा को वीतराग मार्ग पर ले जाने वाली साधना को धर्म कहते हैं| इन तीनों को रत्नत्रय कहते हैं| Continue reading “रत्नत्रय” »

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विनय

विनय

जे एगं नाम से बहुं नामे

जो एक अपने को नमा लेता है; वह बहुतों को नमा लेता है

यदि हम चाहते हैं कि दूसरे लोग हमारा विनय करें; तो हमें भी दूसरों का विनय करना चाहिये| जो घमण्ड करता है, वह सबसे घृणा पाता है – उसे कहीं भी आदर नहीं मिल सकता| Continue reading “विनय” »

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वेदों का अध्ययन

वेदों का अध्ययन

वेया अहीया न भवन्ति ताणं

अध्ययन किये गये वेद रक्षा नहीं कर सकते

अमुक व्यक्ति वेदों का पारायण करता है – अध्ययन करता है; इसलिए आदरणीय है – पूज्य है – पवित्र है – ऐसा मानना भ्रमपूर्ण है| क्यों? ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि आदरणीयता, पूज्यता एवं पवित्रता का सम्बन्ध सच्चरित्रता से है, त्याग से है, परोपकार से है, सदाचार से है; वेदों के अध्ययन से नहीं| Continue reading “वेदों का अध्ययन” »

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दुष्कर तपस्या

दुष्कर तपस्या

असिधारागमणं चेव, दुक्करं चरिउं तवो

तपश्‍चरण तलवार की धार पर चलने के समान दुष्कर है

तप दो प्रकार का होता है – अभ्यन्तर और बाह्य| बाह्य तप दिखाई देता है; इसलिए यह तप व्यक्ति को शीघ्र विख्यात कर देता है; परन्तु अभ्यन्तर तप से ऐसा नहीं होता| Continue reading “दुष्कर तपस्या” »

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आलोचना का महत्त्व



जंबुदीपे जे हुंति पव्वया, ते चेव हुंति हेमस्स| दिज्जंति सत्तखित्ते न छुट्टए दिवसपच्छितं॥
जंबुदीवे जा हुज्ज वालुआ, ताउ हुंति रयणाइ| दिज्जंति सत्त खिते, न छुट्टए दिवसपच्छित्तं॥

जंबूद्वीप में जो मेरु वगैरह पर्वत हैं, वे सब सोने के बन जाये अथवा तो जंबूद्वीप में जो बालू है, वह सब रत्नमय बन जायें| वह सोना और रत्न यदि सात क्षेत्र में दान देवें, तो भी पापी जीव इतना शुद्ध नहीं बनता, जितना भावपूर्वक आलोचना करके प्रायश्‍चित वहनकर शुद्ध बनता है| Continue reading “आलोचना का महत्त्व” »

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रसना पर अंकुश

रसना पर अंकुश

अप्पपिण्डासि पाणासि अप्पं भासेज्ज सुव्वए

सुव्रती व्यक्ति कम खाये, कम पीये और कम बोले

जीभ के दो काम हैं – स्वाद लेना और बोलना| दोनों में संयम की बड़ी आवश्यकता है| Continue reading “रसना पर अंकुश” »

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