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सदा जागृत

सदा जागृत

सुत्ता अमुणी, मुणीणो सया जागरंति

जो सुप्त हैं, वे अमुनि है मुनि तो सदा जागते रहते हैं

जो अमुनि हैं-असाधु हैं; जिनमें साधुता या साधकता का अभाव है, वे आलसी लोग सोते रहते हैं| जो सोते हैं, उनकी आँखें बन्द रहती हैं और उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता| इसी प्रकार जो असाधु हैं; उनके विवेक – चक्षु बन्द रहते हैं और इसीलिए उन्हें अपने कर्त्तव्य अकर्त्तव्य का भान नहीं रहता| वे किंकर्त्तव्यविमूढ़ बने रहते हैं| Continue reading “सदा जागृत” »

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आत्मा का स्वाभाविक धर्म – सम्यक्त्व

आत्मा का स्वाभाविक धर्म   सम्यक्त्व
सम्यक्त्व का अर्थ है, निर्मल दृष्टि, सच्ची श्रद्धा और सच्ची लगन| सम्यक्त्व ही मुक्ति-मार्ग की प्रथम सीढ़ी है| जब तक सम्यक्त्व नहीं है, तब तक समस्त ज्ञान और चारित्र मिथ्या है| जैसे अंक के बिना बिन्दुओं की लम्बी लकीर बना देने पर भी, उसका कोई अर्थ नहीं होता, उससे कोई संख्या तैयार नहीं होती, उसी प्रकार समकित के बिना ज्ञान और चारित्र का कोई उपयोग नहीं, वे शून्यवत् निष्फल है| अगर सम्यक्त्व रूपी अंक हो और उसके बाद ज्ञान और क्रिया (चारित्र) हो तो जैसे एक के अंक पर प्रत्येक शून्य से दस गुनी कीमत हो जाती है, वैसे ही ज्ञान और चारित्र-दान, शील, तप-जप आदि मोक्ष के साधक होते हैं| मुक्ति के लिये सम्यग्दर्शन की सर्वप्रथम अपेक्षा रहती है| Continue reading “आत्मा का स्वाभाविक धर्म – सम्यक्त्व” »

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सदा अमूढ़

सदा अमूढ़

सम्मद्दिट्ठि सया अमूढे

जिसकी दृष्टि सम्यक् है, वह सदा अमूढ़ होता है

मिथ्याद्दष्टि मूढ़ होता है; उसकी मूढ़ता सत्संग से मिट सकती है; किंतु सम्यग्द्दष्टि अमूढ़ होता है, उसकी अमूढ़ता कुसंगति से भी नहीं मिटती| Continue reading “सदा अमूढ़” »

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श्री पुण्डरिक स्वामी की चरण पादुकाएँ

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The Gods – Their Cars – Their Bells their Family – Part 3

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अशिक्षित महिला सदा पति के हृदय में खटकती है

अशिक्षित महिला सदा पति के हृदय में खटकती है
मदनसेना ! पुरुष हृदय किसी बात से उतना अप्रसन्न, दु:खी नहीं होता, जितना कि अशिक्षित स्त्री के व्यवहार से| वह चाहता है कि स्त्री कपड़े-वस्त्र-अलंकार ठीक तरह से पहने| समय समय पर हंसना, बोलना जाने| घर की प्रत्येक वस्तु साफ-स्वच्छ सजा कर रखे| आवश्यक वस्तुओं को यथास्थान व्यवस्थित ढंग से रखे, ताकि समय पर इधर-उधर दौड़धूप न करना पड़े| झगड़ालू न हो| Continue reading “अशिक्षित महिला सदा पति के हृदय में खटकती है” »

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अप्काय की रक्षा करें

अप्काय की रक्षा करें
निम्नलिखित विशेष सावधानियॉं बरतें :-

1. पानी का उपयोग कम से कम कीजिए, उसका घी के समान संभल-संभल कर उपयोग कीजिए|

2. स्नान, कपड़े धोने में, बाथरूम में, शौचालय में भी पानी को छानकर उपयोग में लाएँ|

3. नल को अनावश्यक खुला न छोडें|
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निगोद की रक्षा करें

निगोद की रक्षा करें
1. जो जगह अधिक समय तक गीली रहती हो, वहॉं निगोद की उत्पत्ति होती है| बाथरुम भी यदि सारा दिन गीला रहे तो उसमें भी निगोद की उत्पत्ति होती है| इसलिये घर का कोई भी स्थान अधिक समय तक भीगा न रहे इसकी सावधानी रखें| Continue reading “निगोद की रक्षा करें” »

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विग्रहवर्धक बात न कहें

विग्रहवर्धक बात न कहें

न य विग्गहियं कहं कहिज्जा

विग्रह बढ़ानेवाली बात नहीं करनी चाहिये

बहुत-से लोगों की यह आदत होती है कि वे अधूरी बातें सुन-सुनाकर कलह उत्पन्न कर देते हैं| कभी-कभी अपनी ओर से नमक-मिर्च लगाकर वे बात का बतंगड बना देते हैं – तिल का ताड़ कर देते हैं और राई का पहाड़| Continue reading “विग्रहवर्धक बात न कहें” »

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