मूर्च्छा को ही परिग्रह कहा गया है
मूर्च्छा ही परिग्रह है
64 कला
1. ध्यान, प्राणायाम, आसन आदि की विधि
2. हाथी, घोड़ा, रथ आदि चलाना
3. मिट्टी और कांच के बर्तनों को साफ रखना
4. लकड़ी के सामान पर रंग-रोगन सफाई करना
5. धातु के बर्तनों को साफ करना और उन पर पालिश करना
6. चित्र बनाना
7. तालाब, बावड़ी, कमान आदि बनाना Continue reading “64 कला” »
जियो और जीने दो
हमे इस जीव हिंसा के पाप से बचना होगा| Continue reading “जियो और जीने दो” »
निन्दक भटकता है
संसारे परिवत्तई महं
जो दूसरे मनुष्य का परिभव (तिरस्कार) करता है, वह संसार में भटकता रहता है
सन्तोषी पाप नहीं करते
सन्तोषी पाप नहीं करते
कठोर वाणी न बोलें
वाणी भी दो तरह की होती है – कठोर और कोमल| क्रोध और क्रूरता में वाणी कठोर निकलती है तथा विनय और शान्ति में कोमल | करुणा, दया, सहानुभूति, प्रेम, ममता, मोह, स्नेह और माया की वाणी कोमल होती है| इसके विपरीत निष्ठुरता, निर्दयता, द्वेष, क्रोध आदि में वाणी कठोर निकलती है| Continue reading “कठोर वाणी न बोलें” »
प्रणमुं तुमारा पाय
भाव : मन… चंचलता मननी निर्मलता मननी निश्चलता
प्रसन्नचंद्रनी ७मी नरक अनुत्तर विमान.. ने केवलज्ञाननी साधना
प्रणमुं तुमारा पाय,
प्रसन्नचंद्र प्रणमुं तुमारा पाय;
तुमे छो मोटा ऋषिराय…
राज छोडी रळीयामणुं रे, जाणी अथीर संसार,
vवैरागे मन वाळीयुं रे, लीधो संयम भार
सिंह-सी निर्भयता
सिंह के समान निर्भीक; केवल शब्दों से न डरिये
तुम दरिशन भले पायो
श्री ऋषभदेव जिन स्तवन
राग : परदीप
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