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Quote #13

Love your parents. We are so busy growing up, we often forget they are also growing old.
Unknown
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समय को पहचानिये

समय को पहचानिये

अणभिक्कंतं च वयं संपेहाए,
खणं जाणाहि पंडिए

हे बुद्धिमान साधक! अवशिष्ट आयु को देखते हुए समय को पहचान-अवसर का मूल्य समझ

हीरा भी अमूल्य है और पत्थर भी; परन्तु दोनों की अमूल्यता में महान अन्तर है| हीरा इसलिए अमूल्य है कि उसका कोई मूल्य ही नहीं है| समय की अमूल्यता भी हीरे की तरह है| Continue reading “समय को पहचानिये” »

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धर्मानुकूल आजीविका

धर्मानुकूल आजीविका

धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति

सद्गृहस्थ धर्मानुकूल ही आजीविका करते हैं

जीवित रहने के लिए अन्न और जल चाहिये – कुटुम्ब का पोषण करने के लिए धन चाहिये| मुनियों की बात दूसरी है; परन्तु जो गृहस्थ है, उन्हें तो इस संसार में पद पद पर सम्पत्ति की आवश्यकता होती है| कहते हैं – जिस मुनि के पास कौड़ी (एक पैसा भी) हो, वह कौड़ी का और जिस गृहस्थ के पास कौड़ी न हो, वह भी कौड़ी का ! Continue reading “धर्मानुकूल आजीविका” »

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सच्ची शिक्षा

सच्ची शिक्षा

अट्ठजुत्ताणि सिक्खिज्जा,
निरट्ठाणि उवज्जए

निरर्थक शिक्षा छोड़कर सार्थक शिक्षा ही ग्रहण करें

कुछ विचारकों का मत है कि कला, कला के लिए है और कुछ कला को कल्याण के लिए मानते हैं| पहले विचारकों के अनुसार कला का कोई उद्देश्य होने पर कला मर जायेगी और दूसरे विचारकों के अनुसार कला का यदि कोई अच्छा उद्देश्य न हुआ तो कला दूसरों को मार डालेगी| Continue reading “सच्ची शिक्षा” »

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पूरण सुख शिवसद्मना

Listen to पूरण सुख शिवसद्मना

श्री श्रेयांश्नाथ जिन स्तवन
राग : परमातम पूरण कला…
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Motivational Wallpaper #57

परिवार के सदस्यों से इतना प्रेम कीजिये कि आपके घर में हर रोज उत्सव हो

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Motivational Wallpaper #48

एक पापी की वृत्ति अनेक पापों की सर्जक बन जाती है

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राग द्वेष का क्षय

राग द्वेष का क्षय

रागस्स दोसस्स य संखएणं
एगंतसोक्खं समुवेइ मोक्खं

राग-द्वेष के क्षय से जीव एकान्तसुखस्वरूप मोक्ष को प्राप्त करता है

राग अपने को रुलाता है और द्वेष दूसरों को | रोना किसे अच्छा लगता है ? किसीको नहीं; तब भला रुलाना क्यों अच्छा लगना चाहिये ? हँसने-हँसाने में अर्थात् स्वयं प्रसन्नचित्त रहने और दूसरों को प्रसन्नता वितरित करने में ही जीवन की सफलता निहित है| Continue reading “राग द्वेष का क्षय” »

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राग द्वेष के कारण

राग द्वेष के कारण

रागस्स हेउं समणुमाहु,
दोसस्स हेउं अमणुमाहु

मनोज्ञ शब्दादि राग के और अमनोज्ञ द्वेष के कारण कहे गये हैं

शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श – ये पॉंचों राग के भी कारण हैं और द्वेष के भी|

कोमल प्रशंसात्मक शब्द हमें अच्छे लगते हैं और कठोर निन्दात्मक शब्द बुरे| Continue reading “राग द्वेष के कारण” »

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सद्गुण साधना

सद्गुण साधना

बाहाहिं सागरो चेव,
तरियव्वो गुणोदहिं

सद्गुण-साधना का कार्य भुजाओं से समुद्र तैरने के समान है

पहले नावों से समुद्र-यात्राएँ की जाती थीं| अब बड़े-बड़े जहाज बन गये हैं, जिनमें बैठकर यात्री एक देश से दूसरे देश में आसानी से चले जाते हैं| जबसे वायुयान बनने लगे हैं, जलयानों का भी महत्त्व घट गया है| अब बीच में पड़नेवाले सुविशाल समुद्रों की भी पर्वाह न करके लोग वायुयानों के द्वारा ही परदेश जा पहुँचते हैं| Continue reading “सद्गुण साधना” »

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