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भूल दुहराऊँगा नहीं !

भूल दुहराऊँगा नहीं !

तं परिण्णाय मेहावी, इयाणिं णो,
जमहं पुव्वमकासो पमाएणं

मेधावी साधक को आत्मपरिज्ञान के द्वारा यह निश्‍चय करना चाहिये कि मैंने पूर्वजीवन में प्रमादवश जो कुछ भूल की है, उसे अब कभी नहीं करूँगा

कहते हैं, व्यक्ति ठोकरों से ही सीखता है| प्रत्येक ठोकर उसे कुछ-न-कुछ शिक्षा दे जाती है – सिखा जाती है; परन्तु उस शिक्षा को ग्रहण करना या न करना व्यक्ति की अपनी इच्छा पर निर्भर है| जो मेधासम्प है – बुद्धिमान है, उसीमें ऐसी इच्छा की उत्पत्ति और निवास सम्भव है| Continue reading “भूल दुहराऊँगा नहीं !” »

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दैनिक-चर्या का प्रभाव

दैनिक चर्या का प्रभाव
हम बच्चों को अपने अनुशासन में रखना चाहते हैं, तो हमें भी अपने दैनिक कार्यक्रम व्यवस्थित और यथा समय करना आवश्यक है| आपके नियमित आचरण से बच्चों को सुन्दर प्रेरणा मिलती है| Continue reading “दैनिक-चर्या का प्रभाव” »

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समान भाव रहें

समान भाव रहें

जहा पुण्णस्स कत्थई, तहा तुच्छस्स कत्थई|
जहा तुच्छस्स कत्थई, तहा पुण्णस्स कत्थई|

जैसे पुण्यवान को कहा जाता है, वैसे ही तुच्छ को और जैसे तुच्छ को कहा जाता है, वैसे ही पुण्यवान को

निःस्पृह उपदेशक जैसा उपदेश धनवान को देता है, वैसा ही दरिद्र को भी देता है और जैसा उपदेश दरिद्र को देता है, वैसा ही धनवान को भी देता है| मतलब यह कि उसकी दृष्टि में अमीर-गरीब का कोई भेदभाव नहीं रहता| वह सबको समान उपदेश देता है| Continue reading “समान भाव रहें” »

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अज्ञ अभिमान करते हैं

अज्ञ अभिमान करते हैं

बालजणो पगभई

अज्ञ अभिमान करते हैं

विद्या से विनय पैदा होना चाहिये| बिना विनय के विद्या में वृद्धि नहीं होगी और प्राप्त विद्या भी धीरे-धीरे क्षीण होने लगेगी| विनय से ही विद्या की शोभा होती है| अतः अपनी विद्वत्ता की शोभा के लिए भी इस विनय नामक गुण को अपनाने की आवश्यकता है| Continue reading “अज्ञ अभिमान करते हैं” »

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सरलता और सन्तोष

सरलता और सन्तोष

माया मज्जवभावेणं,
लोहं सन्तोसओ जिणे

माया को ऋजुता से और लोभ को सन्तोष से जीतें

सरल और कुटिल परस्पर विलोम शब्द है| सरलता सम्प व्यक्ति पर लोग अखण्ड विश्‍वास करते हैं और कुटिलता सम्प व्यक्ति पर सर्वथा अविश्‍वास | जहॉं विश्‍वास है, वहीं प्रेम है और जहॉं प्रेम है, वहीं सुख है| Continue reading “सरलता और सन्तोष” »

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वाणी कैसी हो?

वाणी कैसी हो?

भासियव्वं हियं सच्चं

हितकर सच्ची बात कहनी चाहिये

हम जो कुछ बोलें, उससे अपना या दूसरों का भला होना चाहिये| यदि ऐसा नहीं होता तो समझना चाहिये कि हमारी वाणी व्यर्थ गयी| Continue reading “वाणी कैसी हो?” »

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विषयकी कैसे कटे मोरी चाह

Listen to विषयकी कैसे कटे मोरी चाह

राग : गुरु बिन कौन बतावे वाट वागेश्‍वरी
भाव : विषय लगन नी चाह ने मिटाववा माटे नु दर्दभर्यु ब्यान

विषयकी कैसे कटे मोरी चाह,
करती यह फनाह.
पांच ईन्द्रियो पोषे इसको,
मन हैं ईसका नाह.

…विषयकी.१

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सफलता का गुप्त मंत्र

सफलता का गुप्त मंत्र
मैं महान हूँ, अब तक मैं बाह्य जड़ पदार्थो में लुभाकर सुख की खोज करता रहा किन्तु कहीं शान्ति न मिली, वास्तव में सुख है आत्मा में| सम्पूर्ण सुखों का केन्द्र है आत्मा| मैं प्रेमी हूँ, प्रेम ही मेरा जीवन है, मैं प्राणी मात्र की सेवा का प्रेमी हूँ| मैं सुखी हूँ| सफलता मेरे दाये बांये चलती है| Continue reading “सफलता का गुप्त मंत्र” »

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Attainment of Disgust with Existence

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बूढे बैल

बूढे बैल

तत्थ मंदा विसीयंति, उज्जाणंसि जरग्गवा

चढ़ाई के मार्ग में बूढे बैलों की तरह साधनामार्ग की कठिनाई में अज्ञ लोग खि होते हैं

साधना के मार्ग में बहुत धीरज से चलते रहने की आवश्यकता होती है| उसमें संकट आते हैं – कठिनाइयॉं आती हैं – बाधाएँ आती हैं| बुद्धिमान साधक यह सोचते हैं कि यह सारा उपद्रव हमारे धैर्य की परीक्षा के लिए हो रहा है| Continue reading “बूढे बैल” »

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