1 0
post icon

पर्युषण महापर्व – कर्तव्य चौथा

पर्युषण महापर्व   कर्तव्य चौथा

कर्तव्य चौथा – अट्ठमतप

सम्यक्त्वी की विधिपूर्वक की नवकारशी जितने तपसे नरकमें दुःख सहन करने में कारणभूत १०० सालके पापकर्मों का नाश हो जाता है| इस मार्ग पर यदि आगे बढ़े तो पोरिसी से १००० साल… एकासणासे १० लाख साल, उपवाससे १० हज़ार करोड वर्ष, छट्ठ से १ लाख करोड़ वर्ष और अट्ठमसे १० लाख करोड़ वर्ष के पाप नष्ट होते हैं| दो इँच की जीभ के रस को पुष्ट करने के लिए अनादिकाल से अभक्ष्य भोजनादि करके किये हुए पाप का प्रायश्चित अट्ठम तप है, जो आहारसंज्ञा को तोडने में भी सुरंग समान है| यह तप नामके अग्नि से एक ही झटकेमें कर्मोके हजारो टन कचरे का निकाल होता है| विशिष्ट तपके प्रभावसे ही नंदिषेण मुनि आदि की तरह ढ़ेर सारी लब्धि प्राप्त होती हैं| Continue reading “पर्युषण महापर्व – कर्तव्य चौथा” »

Leave a Comment
post icon

Motivational Wallpaper #35

इंसान अपना वो चेहरा तो खूब सजाता है जिस पर लोगों की नज़र होती है मगर आत्मा को सजाने की कोशिश कोई नहीं करता जिस पर परमात्मा की नज़र होती है

Standard Screen Widescreen
800×600 1280×720
1024×768 1280×800
1400×1050 1440×900
1600×1200 1920×1080  
  1920×1200  
  2560×1440  
  2560×1600  

Continue reading “Motivational Wallpaper #35” »

Leave a Comment
post icon

बुद्धिमान में नम्रता

बुद्धिमान में नम्रता

नच्चा नमइ मेहावी

बुद्धिमान ज्ञान पा कर नम्र हो जाता है

जिन वृक्षों पर फल लग जाते हैं, उनकी डालियॉं झुक जाती हैं; इसी प्रकार जिन मनुष्यों में ज्ञान पैदा हो जाता है, वे नम्र हो जाते हैं| Continue reading “बुद्धिमान में नम्रता” »

Leave a Comment
post icon

अपना दुःख

अपना दुःख

एगो सयं पच्चणुहोइ दुक्खं

आत्मा अकेला ही अपना दुःख भोगता है

दुःख अपनी भूल का एक अनिवार्य परिणाम है, जिसे प्रत्येक प्राणी भोगता है| अपना दुःख दूसरा कोई बँटा नहीं सकता| चाहे कोई कितना भी घनिष्ट मित्र हो, रिश्तेदार हो, कुटुम्बी हो- अपने दुःख में वे लोग सहानुभूति प्रकट कर सकते हैं – सेवा कर सकते हैं – सहायता कर सकते हैं, परन्तु हमारा दुःख वे छीन नहीं सकते – भोग नहीं सकते | Continue reading “अपना दुःख” »

Leave a Comment
post icon
post icon

मरीचि का अहंकार और उत्सूत्र

मरीचि का अहंकार और उत्सूत्र
ऋषभदेव भगवान के पास भरत चक्रवर्ती के पुत्र मरीचि ने दीक्षा ग्रहण की| बाद में दुःख सहन करने में कमजोर बनने से उसने त्रिदंडिक वेश धारण किया| इस प्रकार वह चारित्र का त्याग करके देशविरति का पालन करने लगा| अल्प जल से स्नान करना, विलेपन करना, खड़ाऊँ पहनना, छत्र रखना वगैरह क्रिया करने लगा| एक बार भरत महाराजा ने समवसरण में भगवान ऋषभदेव से पूछा- हे प्रभु ! आज कोई ऐसा जीव है, जो भविष्य में तीर्थंकर बनेगा? तब भगवान ने कहा कि ‘‘हे भरत ! तेरा पुत्र मरीचि इस भरत क्षेत्र में प्रथम वासुदेव, महाविदेह में चक्रवर्ती और भरत क्षेत्र में अंतिम तीर्थंकर बनेगा|’’ Continue reading “मरीचि का अहंकार और उत्सूत्र” »

Leave a Comment
post icon

त्यागी कौन नहीं ?

त्यागी कौन नहीं ?

अच्छंदा जे न भुंजंति, न से चाइ त्ति वुच्चई

जो पराधीन होने से भोग नहीं कर पाते, उन्हें त्यागी नहीं कहा जा सकता

कल्पना कीजिये – दो व्यक्तियों के पास सौ-सौ रुपये हैं| एक उनमें से पचास रुपयों का दान कर देता है और दूसरे व्यक्ति के पचास रुपये कहीं खो जाते हैं| इस प्रकार दोनों के पास बराबर पचास-पचास रुपये ही बचे रहते हैं; फिर भी हम पहले व्यक्ति को ही त्यागी कहेंगे, दूसरे को नहीं| ऐसा क्यों! Continue reading “त्यागी कौन नहीं ?” »

Leave a Comment
post icon

त्रास मत दो

त्रास मत दो

न य वि त्तासए परं

किसी भी अन्य जीव को त्रास मत दो

कष्ट ! कितनी बुरी वस्तु है यह| नाम सुनकर भी मन को कष्ट की अनुभूति होने लगती है| कौन है, जो चाहेगा ? कोई नहीं| Continue reading “त्रास मत दो” »

Leave a Comment
post icon

जीव विचार – गाथा 8

Sorry, this article is only available in English. Please, check back soon. Alternatively you can subscribe at the bottom of the page to recieve updates whenever we add a hindi version of this article.

Leave a Comment
post icon

मैं अन्य हूँ

मैं अन्य हूँ

ए खलु कामभोगा, ओ अहमसि

कामभोग अन्य हैं, मैं अन्य हूँ

मधुर संगीत, सुन्दर दृश्य, इत्र, पुष्प हार, मिठाई, नमकीन, कोमल एवं शीतल वस्तु का स्पर्श आदि अनेक कामभागों की विविध आकर्षक सामग्री इस जगत में सर्वत्र बिखरी पड़ी है| Continue reading “मैं अन्य हूँ” »

Leave a Comment
Page 49 of 67« First...102030...4748495051...60...Last »