कर्तव्य चौथा – अट्ठमतप
सम्यक्त्वी की विधिपूर्वक की नवकारशी जितने तपसे नरकमें दुःख सहन करने में कारणभूत १०० सालके पापकर्मों का नाश हो जाता है| इस मार्ग पर यदि आगे बढ़े तो पोरिसी से १००० साल… एकासणासे १० लाख साल, उपवाससे १० हज़ार करोड वर्ष, छट्ठ से १ लाख करोड़ वर्ष और अट्ठमसे १० लाख करोड़ वर्ष के पाप नष्ट होते हैं| दो इँच की जीभ के रस को पुष्ट करने के लिए अनादिकाल से अभक्ष्य भोजनादि करके किये हुए पाप का प्रायश्चित अट्ठम तप है, जो आहारसंज्ञा को तोडने में भी सुरंग समान है| यह तप नामके अग्नि से एक ही झटकेमें कर्मोके हजारो टन कचरे का निकाल होता है| विशिष्ट तपके प्रभावसे ही नंदिषेण मुनि आदि की तरह ढ़ेर सारी लब्धि प्राप्त होती हैं| Continue reading “पर्युषण महापर्व – कर्तव्य चौथा” »