धणेण किं धम्मधुराहिगारे ?
धर्मधुरा खींचने के लिए धन की क्या आवश्यकता है? वहॉं तो सदाचार ही आवश्यक है
धर्मधुरा खींचने के लिए धन की क्या आवश्यकता है? वहॉं तो सदाचार ही आवश्यक है
हमारा यह पूरा जीवन मात्र आदतों के प्रभाव और दबाव से चल रहा है| हम भोजन, स्नान, पढ़ना, सोना, जागना, दैनिक क्रियाएं करना आदि सब आदत से करते हैं…| Continue reading “आदत क्यों नहीं छूटती?” »
इस संसार में जो निःस्पृह है, उसके लिए कुछ भी दुष्कर नहीं है
अज्ञ जीव विवश होकर अन्धकाराच्छदन
आसुरी गति को प्राप्त होते हैं
थोड़े में कही जानेवाली बात को व्यर्थ ही लम्बी न करें
सोचकर बोलें
क्रोध को शान्ति से नष्ट करें
लोभ को अलोभ से तिरस्कृत करनेवाला साधक प्राप्त कामों का भी सेवन नहीं करता