अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहासधाम
त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् |
यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति
तच्चारु – चूत – कलिका – निकरैकहेतुः ||5||
भक्तामर स्तोत्र – श्लोक 6
मूर्च्छा ही परिग्रह है
मुच्छा परिग्गहो वुत्तो
मूर्च्छा को ही परिग्रह कहा गया है
निन्दक भटकता है
जो परिभवइ परं जणं,
संसारे परिवत्तई महं
संसारे परिवत्तई महं
जो दूसरे मनुष्य का परिभव (तिरस्कार) करता है, वह संसार में भटकता रहता है
जियो और जीने दो
पाणिवहं घोरं
हमे इस जीव हिंसा के पाप से बचना होगा| Continue reading “जियो और जीने दो” »
कठोर वाणी न बोलें
नो वयणं फरूसं वइज्जा
वाणी भी दो तरह की होती है – कठोर और कोमल| क्रोध और क्रूरता में वाणी कठोर निकलती है तथा विनय और शान्ति में कोमल | करुणा, दया, सहानुभूति, प्रेम, ममता, मोह, स्नेह और माया की वाणी कोमल होती है| इसके विपरीत निष्ठुरता, निर्दयता, द्वेष, क्रोध आदि में वाणी कठोर निकलती है| Continue reading “कठोर वाणी न बोलें” »
सन्तोषी पाप नहीं करते
सन्तोसिणो नो पकरेंति पावं
सन्तोषी पाप नहीं करते
तुम दरिशन भले पायो
श्री ऋषभदेव जिन स्तवन
राग : परदीप
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प्रणमुं तुमारा पाय
भाव : मन… चंचलता मननी निर्मलता मननी निश्चलता
प्रसन्नचंद्रनी ७मी नरक अनुत्तर विमान.. ने केवलज्ञाननी साधना
प्रणमुं तुमारा पाय,
प्रसन्नचंद्र प्रणमुं तुमारा पाय;
तुमे छो मोटा ऋषिराय…
राज छोडी रळीयामणुं रे, जाणी अथीर संसार,
vवैरागे मन वाळीयुं रे, लीधो संयम भार
…प्रसन्न 01
सिंह-सी निर्भयता
सीहो व सद्देण न संतसेज्जा
सिंह के समान निर्भीक; केवल शब्दों से न डरिये