सार्थक जीवन के चार तत्त्व हैं – प्रेम, सेवा, आनंद और आदर्शवादिता
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जो समय पर अपना काम कर लेते हैं, वे बाद में पछताते नहीं है
प्रभु के शासन में साधर्मिक के प्रति सद्भावका इतना महत्व है कि यह एक ही कर्तव्यको पर्युषणके पॉंच कर्तव्यों में और वार्षिक ग्यारह कर्तव्यों में यानी कि दोनोंमें स्थान प्राप्त हुआ है| श्री संभवनाथ भगवानने पूर्वके तृतीय भवमें साधर्मिक भक्ति करके तीर्थंकर बनने की भूमिका को प्राप्त की थी| Continue reading “साधर्मिक भक्ति – साल का दूसरा कर्तव्य” »
बिना पूछे कुछ भी नहीं बोलना चाहिये और पूछे जाने पर भी असत्य नहीं बोलना चाहिये
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ज्ञानी और सदाचारी मृत्युपर्यन्त त्रस्त (भयाक्रान्त) नहीं होते
हे विश्वेश्वर!
हे परमात्मा !
हे देवाधिदेव !
हे त्रिलोकनाथ !
हे विश्वकल्याणकर्ता विश्वोद्धारक! Continue reading “शाश्वतसुख के स्वामी” »
प्रत्येक प्रकार की अग्नि में एकेंद्रिय जीव होते हैं, उन्हें अग्निकाय कहते हैं| विद्युत भी अग्निकाय है| अग्नि के एक तिनके में असंख्य अग्निकाय जीव होते हैं| Continue reading “तेउकाय की जयणा” »
राग : एशके सामान सब एक दिन यहां रह जायेंगे
भाव : दुन्यवी चीजनी नश्वरता, आवता जन्मनी चिंता
मोहनो त्याग ने धर्मनो राग
मोह से तेरा कमाया, धन यहां रह जायगा;
प्रेमसे अति पुष्ट कीया, तन जलाया जायगा.
प्रभुभजनकी भावना बीन, परलोकमें क्या पायेगा
कुच्छ कमाइ यहां न कीनी, खाली हाथे जायेगा.