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श्रुतज्ञान की भक्ति – साल का आठवा कर्तव्य

श्रुतज्ञान की भक्ति   साल का आठवा कर्तव्य
सिर्फ क्रियासे हम देशआराधक बन सकते हैं, उस में यदि ज्ञान सम्मिलित हो जाए तब हम सर्वआराधक बन सकते हैं| ज्ञानरहित और ज्ञान सहित की क्रिया में जुगनूं और सूर्य का अंतर है| कर्मनिर्जरा के बारे में अज्ञानीके पूर्व करोड़ वर्ष की साधनासे ज्ञानी की श्वासोश्वास जितने समय में की हुई साधना बढ़ जाती है| अज्ञानी तामली तापसने ६० हजार साल तक छट्ठके पारणे छट्ठ किये थे और इक्कीस बार धोये हुए भात से ही पारणा करते थे| Continue reading “श्रुतज्ञान की भक्ति – साल का आठवा कर्तव्य” »

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स्नात्र महोत्सव – साल का चौथा कर्तव्य

स्नात्र महोत्सव   साल का चौथा कर्तव्य
रोज तो सामान्य रूढ़िगत स्नात्र पढ़ाना चलता है| उसमें विधि पालन की उतनी दरकार नहीं होती| पर सालमें एकबार तो ५६ दिक्कुमारी और ६४ इन्द्रों समेत महामहोत्सव पूर्वक स्नात्र पढ़ाना चाहिये| Continue reading “स्नात्र महोत्सव – साल का चौथा कर्तव्य” »

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अदत्तादान और लोभ

अदत्तादान और लोभ

लोभाविले आययइ अदत्तं

लोभ से कलुषित जीव अदत्तादान (चोरी) करता है

जो वस्तु दे दी जाती है, वह दत्त है और जो नहीं दी गयी, वह अदत्त है| सज्जन केवल दत्त वस्तु को ही ग्रहण करना उचित समझते हैं, अदत्त वस्तु को नहीं| Continue reading “अदत्तादान और लोभ” »

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असली और नकली

असली और नकली

राढामणी वेरुलियप्पगासे,
अमहग्घए होइ हु जाणएसु

वैडूर्यरत्न के समान चमकने वाले काच के टुकडे का, जानकारों के समक्ष कुछ भी मूल्य नहीं है

नकली मोती असली मोती से अधिक चमकीला होता है; परन्तु यह वह मूल्य में असली मोती की बराबरी कभी नहीं कर सकता | जानकार दोनों का अन्तर समझ ही लेते हैं| Continue reading “असली और नकली” »

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अधिक न हँसे

अधिक न हँसे

अतिवेलं न हसे मुणी

मुनि कभी मर्यादा से अधिक न हँसे

हँसना और सदा हँसमुख रहना स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है | जो व्यक्ति उदास बन कर दिनभर मुँह फुलाये हुए बैठा रहता है – सबको अपना दुःखड़ा सुनाता रहता है – दूसरों के साथ मारपीट और बकझक करता रहता है, ऐसा चिड़चिड़ा आदमी क्या कभी स्वस्थ रह सकता है ? कभी नहीं| Continue reading “अधिक न हँसे” »

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पानी के त्रस जीवों को जानें-पहचानें

पानी के त्रस जीवों को जानें पहचानें
पानी स्वयं अप्काय जीवों का शरीर है| यह अप्काय जीव एकेन्द्रिय है तथा अनगल (बिना छाने) पानी में चलते-फिरते सूक्ष्म त्रस जीव भी बहुत होते है| पोरा वगैरेह बेइन्द्रिय जीव पानी में होते हैं| Continue reading “पानी के त्रस जीवों को जानें-पहचानें” »

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सिद्धगिरिराज की भावयात्रा – चलो सिद्धगिरि चलें…!

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अनन्तसुख का नाश मत कीजिये

अनन्तसुख का नाश मत कीजिये

माएयं अवमन्जंता, अप्पेणं लुंपहा बहुं

सन्मार्ग का तिरस्कार करके अल्प सुख (विषयसुख) के लिए अनन्त सुख (मोक्षसुख) का विनाश मत कीजिये

यदि कोई हीरे के बदले कङ्कर ले ले तो उसे आप क्या समझेंगे ? आप समझेंगे, वह मूर्ख है| सुमार्ग के बदले कुमार्ग को अपनाने वाले भी ऐसे ही मूर्ख हैं| Continue reading “अनन्तसुख का नाश मत कीजिये” »

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अभोगी नहीं भटकता

अभोगी नहीं भटकता

भोगी भमइ संसारे, अभोगी विप्पमुच्चइ|

भोगी संसार में भटकता है और अभोगी मुक्त हो जाता है

जो इन्द्रियों के वश में रहता है, वह विषयसामग्री को एकत्र करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहता है| अनुकूल विषयसामग्री को जुटा कर कभी वह एक इंद्रिय को तृप्त करता है तो कभी दूसरी को| Continue reading “अभोगी नहीं भटकता” »

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क्रिया में रुचि

क्रिया में रुचि

किरियं च रोयए धीरो

धीर पुरुष क्रिया में रुचिवाला होता है

बच्चा इसलिए दूध नहीं पीता कि दूध से शरीर को पोषण मिलता है| वह तो केवल इसलिए पीता है कि उसे दूध मीठा लगता है, भाता है| Continue reading “क्रिया में रुचि” »

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