सिर्फ क्रियासे हम देशआराधक बन सकते हैं, उस में यदि ज्ञान सम्मिलित हो जाए तब हम सर्वआराधक बन सकते हैं| ज्ञानरहित और ज्ञान सहित की क्रिया में जुगनूं और सूर्य का अंतर है| कर्मनिर्जरा के बारे में अज्ञानीके पूर्व करोड़ वर्ष की साधनासे ज्ञानी की श्वासोश्वास जितने समय में की हुई साधना बढ़ जाती है| अज्ञानी तामली तापसने ६० हजार साल तक छट्ठके पारणे छट्ठ किये थे और इक्कीस बार धोये हुए भात से ही पारणा करते थे| Continue reading “श्रुतज्ञान की भक्ति – साल का आठवा कर्तव्य” »
श्रुतज्ञान की भक्ति – साल का आठवा कर्तव्य
स्नात्र महोत्सव – साल का चौथा कर्तव्य
रोज तो सामान्य रूढ़िगत स्नात्र पढ़ाना चलता है| उसमें विधि पालन की उतनी दरकार नहीं होती| पर सालमें एकबार तो ५६ दिक्कुमारी और ६४ इन्द्रों समेत महामहोत्सव पूर्वक स्नात्र पढ़ाना चाहिये| Continue reading “स्नात्र महोत्सव – साल का चौथा कर्तव्य” »
अदत्तादान और लोभ
लोभ से कलुषित जीव अदत्तादान (चोरी) करता है
असली और नकली
अमहग्घए होइ हु जाणएसु
वैडूर्यरत्न के समान चमकने वाले काच के टुकडे का, जानकारों के समक्ष कुछ भी मूल्य नहीं है
अधिक न हँसे
मुनि कभी मर्यादा से अधिक न हँसे
पानी के त्रस जीवों को जानें-पहचानें
पानी स्वयं अप्काय जीवों का शरीर है| यह अप्काय जीव एकेन्द्रिय है तथा अनगल (बिना छाने) पानी में चलते-फिरते सूक्ष्म त्रस जीव भी बहुत होते है| पोरा वगैरेह बेइन्द्रिय जीव पानी में होते हैं| Continue reading “पानी के त्रस जीवों को जानें-पहचानें” »
सिद्धगिरिराज की भावयात्रा – चलो सिद्धगिरि चलें…!
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अनन्तसुख का नाश मत कीजिये
सन्मार्ग का तिरस्कार करके अल्प सुख (विषयसुख) के लिए अनन्त सुख (मोक्षसुख) का विनाश मत कीजिये
अभोगी नहीं भटकता
भोगी संसार में भटकता है और अभोगी मुक्त हो जाता है
क्रिया में रुचि
धीर पुरुष क्रिया में रुचिवाला होता है