अट्ठा हणंति, अणट्ठा हणंति
कुछ लोग प्रयोजन से हिंसा करते हैं और कुछ लोग बिना प्रयोजन ही
कुछ लोग प्रयोजन से हिंसा करते हैं और कुछ लोग बिना प्रयोजन ही
साधक को कमलपत्र की तरह निर्लेप और आकाश की तरह निरवलम्ब रहना चाहिये
सत्य ही भगवान है
अनुज्ञा लेकर (ही कोई वस्तु) ग्रहण करनी चाहिये
भगवती अहिंसा भीतों (डरे हुओं) के लिए शरण के समान है
डरना नहीं चाहिये| भीत के निकट भय शीघ्र आते हैं
क्रुद्धा लुब्ध और मुग्ध हिंसा करते हैं
प्राणवध चण्ड है, रौद्र है, क्षुद्र है, अनार्य है, करुणारहित है, क्रूर है, भयंकर है
शरीर सादि है और सान्त भी
लोभी और चञ्चल व्यक्ति झूठ बोला करता है