ण भाइयव्वं, भीतं खु भया अइंति लहुयं
डरना नहीं चाहिये| भीत के निकट भय शीघ्र आते हैं
डरना नहीं चाहिये| भीत के निकट भय शीघ्र आते हैं
क्रुद्धा लुब्ध और मुग्ध हिंसा करते हैं
प्राणवध चण्ड है, रौद्र है, क्षुद्र है, अनार्य है, करुणारहित है, क्रूर है, भयंकर है
शरीर सादि है और सान्त भी
लोभी और चञ्चल व्यक्ति झूठ बोला करता है
अहिंसा त्रस एवं स्थावर समस्त भूतों (प्राणियों) का कल्याण करनेवाली है
सत्य, हित, मित और ग्राह्य वचन बोलें
इन्द्रों सहित देव भी (विषयों से) न कभी तृप्त होते हैं, न सन्तुष्ट
कुछ लोग प्रयोजन से हिंसा करते हैं और कुछ लोग बिना प्रयोजन ही
साधक को कमलपत्र की तरह निर्लेप और आकाश की तरह निरवलम्ब रहना चाहिये