नाइवेलं वएज्जा
अधिक समय तक एवं अमर्याद न बोलें
अधिक समय तक एवं अमर्याद न बोलें
कुछ लोग प्रयोजन से हिंसा करते हैं और कुछ लोग बिना प्रयोजन ही
हे गौतम! तू क्षण भर के लिए भी प्रमाद मत कर
अपने से बड़े गुरुजन (रत्नाधिक) जब बोलते हों – व्याख्यान करते हों, तब उनके बीच में नहीं बोलना चाहिये
माया मित्रता को नष्ट करती है
जिसमें लोभ नहीं होता, उसकी तृष्णा नष्ट हो जाती है और जो अकिंचन है, उसका लोभ नष्ट हो जाता है
लोभ से कलुषित जीव अदत्तादान (चोरी) करता है
वैडूर्यरत्न के समान चमकने वाले काच के टुकडे का, जानकारों के समक्ष कुछ भी मूल्य नहीं है
मुनि कभी मर्यादा से अधिक न हँसे
सन्मार्ग का तिरस्कार करके अल्प सुख (विषयसुख) के लिए अनन्त सुख (मोक्षसुख) का विनाश मत कीजिये