जत्थ संका भवे तं तु,
एवमेयं ति नो वए
एवमेयं ति नो वए
जिस विषय में अपने को शंका हो, उस विषय में ‘‘यह ऐसी ही है’’ ऐसी भाषा न बोलें
जिस विषय में अपने को शंका हो, उस विषय में ‘‘यह ऐसी ही है’’ ऐसी भाषा न बोलें
मुनियों का हृदय शरद्कालीन नदी के जल की तरह निर्मल होता है| वे पक्षी की तरह बन्धनों से विप्रमुक्त और पृथ्वी की तरह समस्त सुख-दुःखों को समभाव से सहन करने वाले होते हैं
जो अभ्यन्तर को जानता है, वह बाह्य को जानता है और जो बाह्य को जानता है वह अभ्यन्तर को जानता है
मान को नम्रता या मृदुता से जीतें
सदाचार-प्रवृत्त आत्मा मित्र है और दुराचारप्रवृत शत्रु
बुद्धि ही धर्म का निर्णय कर सकती है
तू, तुम जैसे अमनोहर शब्द कभी नहीं बोलें
कामभोगों में आसक्त रहनेवाले व्यक्ति कर्मों का बन्धन करते हैं
संसार में जो वन्दन पूजन (सन्मान) है, साधक उसे महान दलदल समझे
जो मेधावी सत्य की आज्ञा में उपस्थित रहता है, वह मृत्यु के प्रवाह को तैर जाता है