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अवक्तव्य
जो गोपनीय हो उसे न कहें
न प्रिय, न अप्रिय
पियमप्पियं कस्स वि नो करेज्जा
सारे जगत को जो समभाव से देखता है उसे न किसी का प्रिय करना चाहिये, न अप्रिय
शंकाशील न बनें
नो लहइ समाहिं
शंकाशील व्यक्ति को कभी समाधि नहीं मिलती
पीठ का मांस न खायें
पीठ का मांस नहीं खाना चाहिये अर्थात् किसी की निन्दा उसकी अनुपस्थिति में नहीं करनी चाहिये
महर्षि और संयत
न यावि पूयं, गरिहं च संजए
जो पूजा पा कर भी अहंकार नहीं करता और निन्दा पाकर भी अपने को हीन नहीं मानता; वह संयत महर्षि है
साधु-सम्पर्क
साधुओं से सम्पर्क रखना चाहिये
संगति पूरे जीवन को प्रभावित करती है| वह उन्नति के द्वार खोल देती है| एक कीट – कितना साधारण जीवन होता है उसका? परन्तु फूलों के साथ रहकर भगवान की मूर्ति के सिरपर जा पहुँचता है वह| एक छोटी नदी या नाला गंगा के साथ मिलकर कहॉं जा पहुँचता है? रत्नाकर समुद्र में| Continue reading “साधु-सम्पर्क” »
हिंसा के कारण
क्रुद्धा लुब्ध और मुग्ध हिंसा करते हैं
स्वपर-कल्याण में समर्थ
ज्ञानी स्व-परकल्याण करने में समर्थ होते हैं
इसी क्षण को समझें
प्रतिक्षण अपनी आयु ठीक उसी प्रकार क्षीण होती जा रही है, जिस प्रकार अञ्जलि में रहा हुआ जल क्षीण होता रहता है| धीरे-धीरे एक समय ऐसा आयेगा, जब आयु सर्वथा समाप्त हो जायेगी और हम अपनी अन्तिम सॉंस छोड़ कर सदा के लिए आँखें बन्द कर लेंगे| Continue reading “इसी क्षण को समझें” »