भगवती अहिंसा भीतों (डरे हुओं) के लिए शरण के समान है
भगवती अहिंसा
भगवती अहिंसा…. भीयाणं पि व सरणं
भीत अर्थात् संकटग्रस्त डरा हुआ व्यक्ति अपनी सुरक्षा के लिए किसी समर्थ व्यक्ति की शरण ढूँढता है| शरण या आश्रय मिल जाने पर शरणार्थी सन्तुष्ट हो जाता है – निर्भय हो जाता है; वैसे ही भगवती अहिंसा का आश्रय लेने पर भी व्यक्ति सन्तुष्ट एवं निर्भय हो जाता है| Continue reading “भगवती अहिंसा” »
जीवन की क्षणभुंगरता
वओ अच्चेति जोव्वणं च
आयु बीत रही है और युवावस्था भी
वीर्यको न छिपायें
नो निह्नवेज्ज वीरियं
वीर्य को छिपाना नहीं चाहिये
जो बुद्धिमान हैं, उन्हें अपनी बुद्धि का उपयोग दूसरों के झगड़े मिटाने में करना चाहिये| Continue reading “वीर्यको न छिपायें” »
मन के जीते जीत
इमेण चेव जुज्झाहि,
किं ते जुज्झेण बज्झओ ?
किं ते जुज्झेण बज्झओ ?
आन्तरिक विकारों से ही युद्ध कर, बाह्य युद्ध से तुझे क्या लाभ?
हाथी और कुन्थु में जीवन
हत्थिस्स य कुन्थुस्स य समे चेव जीवे
हाथी और कुन्थु में समान ही जीव होता है
भक्तामर स्तोत्र – श्लोक 1
भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा-
मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम् |
सम्यक् प्रणम्य जिनपादयुगं युगादा-
वालम्बनं भवजले पततां जनानाम् || 1 ||
गुणनाश के कारण
चउहिं ठाणेहिं सन्ते गुणे नासेज्जा कोहेणं,
पडिनिवेसेणं, अकयण्णुयाए, मिच्छत्ताभिनिवेसेणं
पडिनिवेसेणं, अकयण्णुयाए, मिच्छत्ताभिनिवेसेणं
मनुष्य में विद्यमान गुण भी चार कारणों से नष्ट हो जाते हैं – क्रोध, ईर्ष्या, अकृतज्ञता और मिथ्या आग्रह
संयम और तप
संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ
संयम और तप से आत्मा को भावित (पवित्र) करता हुआ साधक विहार करता है
मृत्यु का आगमन
नत्थि कालस्स णागमो
मृत्यु किसी भी समय आ सकती है
डरना नहीं चाहिये
ण भाइयव्वं, भीतं खु भया अइंति लहुयं
डरना नहीं चाहिये| भीत के निकट भय शीघ्र आते हैं