1 0 Tag Archives: जैन आगम
post icon

वाणी कैसी हो?

वाणी कैसी हो?

भासियव्वं हियं सच्चं

हितकर सच्ची बात कहनी चाहिये

हम जो कुछ बोलें, उससे अपना या दूसरों का भला होना चाहिये| यदि ऐसा नहीं होता तो समझना चाहिये कि हमारी वाणी व्यर्थ गयी| Continue reading “वाणी कैसी हो?” »

Leave a Comment
post icon

बूढे बैल

बूढे बैल

तत्थ मंदा विसीयंति, उज्जाणंसि जरग्गवा

चढ़ाई के मार्ग में बूढे बैलों की तरह साधनामार्ग की कठिनाई में अज्ञ लोग खि होते हैं

साधना के मार्ग में बहुत धीरज से चलते रहने की आवश्यकता होती है| उसमें संकट आते हैं – कठिनाइयॉं आती हैं – बाधाएँ आती हैं| बुद्धिमान साधक यह सोचते हैं कि यह सारा उपद्रव हमारे धैर्य की परीक्षा के लिए हो रहा है| Continue reading “बूढे बैल” »

Leave a Comment
post icon

विनय

विनय

जे एगं नाम से बहुं नामे

जो एक अपने को नमा लेता है; वह बहुतों को नमा लेता है

यदि हम चाहते हैं कि दूसरे लोग हमारा विनय करें; तो हमें भी दूसरों का विनय करना चाहिये| जो घमण्ड करता है, वह सबसे घृणा पाता है – उसे कहीं भी आदर नहीं मिल सकता| Continue reading “विनय” »

Leave a Comment
post icon

वेदों का अध्ययन

वेदों का अध्ययन

वेया अहीया न भवन्ति ताणं

अध्ययन किये गये वेद रक्षा नहीं कर सकते

अमुक व्यक्ति वेदों का पारायण करता है – अध्ययन करता है; इसलिए आदरणीय है – पूज्य है – पवित्र है – ऐसा मानना भ्रमपूर्ण है| क्यों? ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि आदरणीयता, पूज्यता एवं पवित्रता का सम्बन्ध सच्चरित्रता से है, त्याग से है, परोपकार से है, सदाचार से है; वेदों के अध्ययन से नहीं| Continue reading “वेदों का अध्ययन” »

Leave a Comment
post icon

दुष्कर तपस्या

दुष्कर तपस्या

असिधारागमणं चेव, दुक्करं चरिउं तवो

तपश्‍चरण तलवार की धार पर चलने के समान दुष्कर है

तप दो प्रकार का होता है – अभ्यन्तर और बाह्य| बाह्य तप दिखाई देता है; इसलिए यह तप व्यक्ति को शीघ्र विख्यात कर देता है; परन्तु अभ्यन्तर तप से ऐसा नहीं होता| Continue reading “दुष्कर तपस्या” »

Leave a Comment
post icon

रसना पर अंकुश

रसना पर अंकुश

अप्पपिण्डासि पाणासि अप्पं भासेज्ज सुव्वए

सुव्रती व्यक्ति कम खाये, कम पीये और कम बोले

जीभ के दो काम हैं – स्वाद लेना और बोलना| दोनों में संयम की बड़ी आवश्यकता है| Continue reading “रसना पर अंकुश” »

Leave a Comment
post icon

लोभ सर्वनाशक है

लोभ सर्वनाशक है

लोहो सव्वविणासणो

लोभ सब कुछ नष्ट कर देता है

क्रोध प्रेम का, मान विनय का और माया अथवा छल मित्रों का नाशक है; परन्तु लोभ इन सबमें प्रबल है| वह समस्त सद्गुणों को नष्ट कर देता है| Continue reading “लोभ सर्वनाशक है” »

Leave a Comment
post icon

पाप श्रमण

पाप श्रमण

सुच्चा पिच्चा सुहं सुवइ पावसमणे त्ति वुच्चइ

जो खा-पीकर आराम से सोता है, वह पापश्रमण कहलाता है

भोजन शरीरयात्रा के लिए है| शरीर की शक्ति टिकाये रखने के लिए है; परन्तु जीवन की सफलता शक्ति को टिकाये रखने में नहीं, उसका सदुपयोग करने में है| Continue reading “पाप श्रमण” »

Leave a Comment
post icon

असंवृत्तों का मोह

असंवृत्तों का मोह

मोहं जंति नरा असंवुडा

असंवृत मनुष्य मोहित हो जाते हैं

जो असंयमी हैं – इन्द्रियों को जो अपने वश में नहीं रख सकते – मन पर जिनका बिल्कुल अधिकार नहीं है; ऐसे लोग विषयों के प्रति शीघ्र आकर्षित हो जाते हैं| Continue reading “असंवृत्तों का मोह” »

Leave a Comment
post icon

बन्धनमुक्त करें

बन्धनमुक्त करें

एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए

वही वीर प्रशंसनीय बनता है, जो बद्ध को प्रतिमुक्त करता है

तलवार से मनुष्य अपने हाथ-पॉंव भी काट सकता है और दूसरों के बन्धन भी – हाथों से वह दूसरों को तमाचे भी मार सकता है और उनकी सहायता भी कर सकता है| इसी प्रकार उसमें जो शक्ति है, उसका वह सदुपयोग भी कर सकता है और दुरुपयोग भी | शक्ति भी तलवार की तरह एक हथियार है – एक साधन है| प्रशंसा और निन्दा दोनों उससे प्राप्त की जा सकती हैं| Continue reading “बन्धनमुक्त करें” »

Leave a Comment
Page 20 of 25« First...10...1819202122...Last »