विमुत्ता हु ते जणा, जे जणा पारगामिणो
जो जन (कामनाओं को) पार कर गये हैं, वे सचमुच ही मुक्त हैं
जो जन (कामनाओं को) पार कर गये हैं, वे सचमुच ही मुक्त हैं
कुशल पुरुष न बद्ध होता है, न मुक्त
मोहग्रस्त व्यक्ति न इस पार रहते हैं, न उस पार
यह जीव अनेक बार उच्च गोत्रमें और अनेक बार नीच गोत्र में जन्म ले चुका है; परन्तु इससे न कोई हीन होता है, न महान|
वृद्ध होने पर व्यक्ति न हास-परिहास के योग्य रहता है, न क्रीड़ा के, न रति के और न शृंगार के ही
जो क्षण है, वह कर्म का मूल है
कुशल व्यक्ति को प्रमाद नहीं करना चाहिये
शस्त्र एक से एक बढ़कर हैं, परन्तु अशस्त्र (अहिंसा) एक से एक बढ़कर नहीं है
न अपनी आशातना करो, न दूसरों की
अपने से बड़े गुरुजन (रत्नाधिक) जब बोलते हों – व्याख्यान करते हों, तब उनके बीच में नहीं बोलना चाहिये