दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो,
मोहो हओ जस्स न होइ तण्हा
मोहो हओ जस्स न होइ तण्हा
जिसमें मोह नहीं होता, उसका दुःख नष्ट हो जाता है और जिसमें तृष्णा नहीं होती उसका मोह नष्ट हो जाता है
जिसमें मोह नहीं होता, उसका दुःख नष्ट हो जाता है और जिसमें तृष्णा नहीं होती उसका मोह नष्ट हो जाता है
इन्द्रों सहित देव भी (विषयों से) न कभी तृप्त होते हैं, न सन्तुष्ट
जो क्षण है, वह कर्म का मूल है
अज्ञ पापों पर घमण्ड करता है
कुशल व्यक्ति को प्रमाद नहीं करना चाहिये
पहले ज्ञान, फिर दया
कषाय अग्नि है तो श्रुत, शील और तप को जल कहा गया है
श्रद्धा अत्यन्त दुर्लभ है
एक कण से द्रोण-भर पाक की और एक गाथा से कवि की परीक्षा हो जाती है
किसी के साथ वैर-विरोध मत करो