कई बेसमझ अज्ञान महिलाएँ अपने भर्तार और घर की आय-व्यय का विचार न कर, वे विशेष वस्त्रालंकार श्रृंगार की वस्तुओं के लिये मरती हैं, कलह कर बैठती हैं| इसी मनमुटाव के कारण वे शनै: शनै: अपने परिवार और समाज की दृष्टि से गिर जाती हैं| Continue reading “परिवार की दृष्टि से न गिरो” »
परिवार की दृष्टि से न गिरो
सम्प्रति महाराज
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शंका हो तो न बोलें
जत्थ संका भवे तं तु,
एवमेयं ति नो वए
एवमेयं ति नो वए
जिस विषय में अपने को शंका हो, उस विषय में ‘‘यह ऐसी ही है’’ ऐसी भाषा न बोलें
निर्मल, मुक्त एवं सहिष्णु
सारदसलिलं इव सुद्धहियया,
विहग इव विप्पमुक्का,
वसुंधरा इव सव्वफासविसहा
विहग इव विप्पमुक्का,
वसुंधरा इव सव्वफासविसहा
मुनियों का हृदय शरद्कालीन नदी के जल की तरह निर्मल होता है| वे पक्षी की तरह बन्धनों से विप्रमुक्त और पृथ्वी की तरह समस्त सुख-दुःखों को समभाव से सहन करने वाले होते हैं
सो क्या जाने पीर पराई ?
जे अज्झत्थं जाणइ, से बहिया जाणइ|
जे बहिया जाणइ, से अज्झत्थं जाणइ|
जे बहिया जाणइ, से अज्झत्थं जाणइ|
जो अभ्यन्तर को जानता है, वह बाह्य को जानता है और जो बाह्य को जानता है वह अभ्यन्तर को जानता है
मृदुता को अपनाइये
माणं मद्दवया जिणे
मान को नम्रता या मृदुता से जीतें
मित्र-शत्रु कौन ?
अप्पा मित्तममित्तं य, सुप्पट्ठियदुप्पट्ठियो
सदाचार-प्रवृत्त आत्मा मित्र है और दुराचारप्रवृत शत्रु
बुद्धिवाद
पा समिक्खए धम्मं
बुद्धि ही धर्म का निर्णय कर सकती है