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परलोक में

परलोक में

इहलोगे सुचिण्णा कम्मा परलोगे
सुहफल विवाग संजुत्ता भवन्ति

इस लोक में किये हुए सत्कर्म परलोक में सुखप्रद होते हैं

जिन अच्छे कार्यों का सुफल इस लोक में अर्थात् इस भव में नहीं मिल पाता, उनका सुफल अगले भव में अथवा परलोक में प्राप्त होता है| Continue reading “परलोक में” »

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पूज्य शिष्य

पूज्य शिष्य

जो छंदमाराहयइ स पुज्जो

जो इंगिताकार से स्वीकार करता है वह पूज्य बनता है

जो आवश्यकता और गुरुजनों की इच्छा को समझकर बिना कहे अपने कर्त्तव्य का पालन करता है, वह उत्तम शिष्य है| Continue reading “पूज्य शिष्य” »

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बिना पूछे न बोलें

बिना पूछे न बोलें

अपुच्छिओ न भासेज्जा, भासमाणस्स अन्तरा

बिना पूछे किसी बोलने वाले के बीच में नहीं बोलना चाहिये

सभ्यता कहती है कि यदि कोई आदमी कुछ बोल रहा हो तो जब तक उसका कथन पूर्ण नहीं हो जाता, तब तक सुननेवाले को मौन रहना चाहिये| वादविवाद अथवा शास्त्रार्थ में तो इस नियम का और भी अधिक सावधानी के साथ पालन करने का ध्यान रखना पड़ता है| Continue reading “बिना पूछे न बोलें” »

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विनय का नाशक

विनय का नाशक

माणो विणयणासणो

मान विनय का नाशक है

यहॉं मान का अर्थ-अभिमान है, सन्मान नहीं| जिस प्रकार क्रोध और प्रेम एक-साथ नहीं रह सकते; उसी प्रकार अभिमान और विनय भी एक साथ नहीं रह सकते| Continue reading “विनय का नाशक” »

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श्रेयस्कर आचरण

श्रेयस्कर आचरण

जं सेयं तं समायरे

जो श्रेय (हितकर) हो, उसीका आचरण करना चाहिये

इस चराचर जगत के अधिकांश प्राणी अपनी अदूरदर्शिता के कारण सौन्दर्य एवं माधुर्य के दास बने हुए हैं| दिन-रात वे विषयभोगों का चिन्तन करते रहते हैं| वैषयिक सुख भले ही क्षणिक हो, परन्तु उसे प्राप्त करने के प्रयत्न में जीवन का बहुमूल्य समय लगाते रहते हैं – कहना चाहिये कि व्यर्थ खोते रहते हैं| Continue reading “श्रेयस्कर आचरण” »

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वैरवृद्धि

वैरवृद्धि

परिग्गहनिविट्ठाणं वेरं तेसिं पवड्ढइ

जो परिग्रह में व्यस्त हैं, वे संसार में अपने प्रति वैर ही बढ़ाते हैं

जो अपने पास आवश्यकता से अधिक धन का संग्रह करते हैं, वे अपने चारों ओर शत्रुओं की सृष्टि करते हैं| धन संग्रह के लिए नहीं, किन्तु अपनी और दूसरों की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए होता है| यह बात परिग्रही भूल जाते हैं| Continue reading “वैरवृद्धि” »

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धन से प्रमत्त का त्राण नहीं

धन से प्रमत्त का त्राण नहीं

वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते,
इमम्मि लोए अदु वा परत्था

प्रमत्त मनुष्य धन के द्वारा न इस लोक में अपनी रक्षा कर सकता है, न परलोक में ही

वीरता से या साहस से हमारी रक्षा होती है, कायरता से नहीं| Continue reading “धन से प्रमत्त का त्राण नहीं” »

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आन्तरिक शुद्धि

आन्तरिक शुद्धि

उदगस्स फासेण सिया य सिद्धी,
सिज्झंसु पाणा बहवे दगंसि

यदि जलस्पर्श (स्नान) से ही सिद्धि प्राप्त होती तो बहुत-से जलजीव सिद्ध हो जाते

बहुत-से लोग स्नान करके समझते हैं कि उन्होंने बहुत बड़ी आत्मसाधना कर ली है, परन्तु ऐसे लोग अन्धविश्‍वास के शिकार हैं| वे नहीं समझते कि शारीरिक शुद्धि और आत्मिकशुद्धि में बहुत बड़ा अन्तर है| Continue reading “आन्तरिक शुद्धि” »

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समय पर काम करें

समय पर काम करें

काले कालं समायरे

समय पर समयोचित कार्य करना चाहिये

हम भूख लगने पर पानी नहीं पीते और प्यास लगने पर भोजन नहीं करते; क्यों कि ऐसा करना अनुचित है| इसी प्रकार खेलने के समय खाना, खाने के समय पढ़ना या पढ़ने के समय खेलना भी अनुचित है| Continue reading “समय पर काम करें” »

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तपस्या और जाति

तपस्या और जाति

सुक्खं खु दीसइ तवोविसेसो,
न दीसई जाइविसेस कोई

तपविशेष तो प्रत्यक्ष दिखाई देता है, परन्तु कोई जातिविशेष नहीं दिखाई देता

तपस्या से शरीर में जो कृशता पैदा हो जाती है, उसे देखने से पता चल जाता है कि अमुक व्यक्ति तपस्वी है या नहीं| तपस्या से तपस्वी का तन भले ही क्षीण हो; परन्तु मन क्षीण नहीं होता| Continue reading “तपस्या और जाति” »

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