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धर्मानुकूल आजीविका

धर्मानुकूल आजीविका

धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति

सद्गृहस्थ धर्मानुकूल ही आजीविका करते हैं

जीवित रहने के लिए अन्न और जल चाहिये – कुटुम्ब का पोषण करने के लिए धन चाहिये| मुनियों की बात दूसरी है; परन्तु जो गृहस्थ है, उन्हें तो इस संसार में पद पद पर सम्पत्ति की आवश्यकता होती है| कहते हैं – जिस मुनि के पास कौड़ी (एक पैसा भी) हो, वह कौड़ी का और जिस गृहस्थ के पास कौड़ी न हो, वह भी कौड़ी का ! Continue reading “धर्मानुकूल आजीविका” »

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सच्ची शिक्षा

सच्ची शिक्षा

अट्ठजुत्ताणि सिक्खिज्जा,
निरट्ठाणि उवज्जए

निरर्थक शिक्षा छोड़कर सार्थक शिक्षा ही ग्रहण करें

कुछ विचारकों का मत है कि कला, कला के लिए है और कुछ कला को कल्याण के लिए मानते हैं| पहले विचारकों के अनुसार कला का कोई उद्देश्य होने पर कला मर जायेगी और दूसरे विचारकों के अनुसार कला का यदि कोई अच्छा उद्देश्य न हुआ तो कला दूसरों को मार डालेगी| Continue reading “सच्ची शिक्षा” »

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राग द्वेष का क्षय

राग द्वेष का क्षय

रागस्स दोसस्स य संखएणं
एगंतसोक्खं समुवेइ मोक्खं

राग-द्वेष के क्षय से जीव एकान्तसुखस्वरूप मोक्ष को प्राप्त करता है

राग अपने को रुलाता है और द्वेष दूसरों को | रोना किसे अच्छा लगता है ? किसीको नहीं; तब भला रुलाना क्यों अच्छा लगना चाहिये ? हँसने-हँसाने में अर्थात् स्वयं प्रसन्नचित्त रहने और दूसरों को प्रसन्नता वितरित करने में ही जीवन की सफलता निहित है| Continue reading “राग द्वेष का क्षय” »

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राग द्वेष के कारण

राग द्वेष के कारण

रागस्स हेउं समणुमाहु,
दोसस्स हेउं अमणुमाहु

मनोज्ञ शब्दादि राग के और अमनोज्ञ द्वेष के कारण कहे गये हैं

शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श – ये पॉंचों राग के भी कारण हैं और द्वेष के भी|

कोमल प्रशंसात्मक शब्द हमें अच्छे लगते हैं और कठोर निन्दात्मक शब्द बुरे| Continue reading “राग द्वेष के कारण” »

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सद्गुण साधना

सद्गुण साधना

बाहाहिं सागरो चेव,
तरियव्वो गुणोदहिं

सद्गुण-साधना का कार्य भुजाओं से समुद्र तैरने के समान है

पहले नावों से समुद्र-यात्राएँ की जाती थीं| अब बड़े-बड़े जहाज बन गये हैं, जिनमें बैठकर यात्री एक देश से दूसरे देश में आसानी से चले जाते हैं| जबसे वायुयान बनने लगे हैं, जलयानों का भी महत्त्व घट गया है| अब बीच में पड़नेवाले सुविशाल समुद्रों की भी पर्वाह न करके लोग वायुयानों के द्वारा ही परदेश जा पहुँचते हैं| Continue reading “सद्गुण साधना” »

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विज्ञान और धर्म

विज्ञान और धर्म

विण्णए समागम्म धम्मसाहणमिच्छिउं

धर्म के साधनों का विज्ञान से समन्वय करना चाहिये

धर्म के साधनों का विज्ञान से समझौता होना चाहिये और विज्ञान के साधनों का धर्म से| इस प्रकार धर्म से विज्ञान का सम्बन्ध जुड़ना चाहिये; दोनों का समन्वय होना चाहिये| दोनों परस्पर एक-दूसरे के पूरक बनें – सहयोगी बनें, विरोधी न रहें| इसकी जिम्मेदारी वैज्ञानिकों पर भी है और धर्मात्माओं पर भी| Continue reading “विज्ञान और धर्म” »

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श्रद्धा से टिके रहें

श्रद्धा से टिके रहें

जाए सद्धाए निक्खंते,
तमेव अणुपालेज्जा विजहित्ता विसोत्तियं

जिस श्रद्धा के साथ निष्क्रमण किया है, उसी श्रद्धा के साथ विस्त्रोतसिका (शंका) छोड़कर उसका अनुपालन करना चाहिये

साधना के मार्ग में फूलों से अधिक तीक्ष्ण कण्टक होते हैं, इसलिए साधक को बीच-बीच में अनेक संकटों का सामना करना पड़ता है| उनसे व्याकुल हो कर कभी-कभी वह अपने मार्ग से भटक जाता है – बारम्बार मिलनेवाली असफलताओं से कभी-कभी वह निराश भी हो जाता है| Continue reading “श्रद्धा से टिके रहें” »

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उत्तम तप

उत्तम तप

तवेसु वा उत्तमं बंभचेरं

ब्रह्मचर्य तपों में उत्तम है

परमार्थ के लिए या आत्मकल्याण के लिए जो विविध कष्टों में सहिष्णुता का परिचय दिया जाता है, वही तपस्या है| शास्त्रों में दो प्रकार की तपस्या का वर्णन आता है – बाह्य तप और अभ्यन्तर तप| अनशन, ऊनोदरी, वृत्तिसंक्षेप, रसपरित्याग, कायक्लेश और प्रतिसंलीनता – ये छः बाह्यतप हैं और प्रायश्‍चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान एवं कायोत्सर्ग ये छः अभ्यन्तर तप| साधक दोनों प्रकार के तप करता है| Continue reading “उत्तम तप” »

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चार संयम

चार संयम

चउव्विहे संजमे – मणसंजमे,
वइसंजमे, कायसंजमे, उवगरणसंजमे

मनसंयम, वचनसंयम, शरीरसंयम और उपकरणसंयम – ये संयम के चार प्रकार हैं

समुद्र जिस प्रकार अपनी मर्यादा नहीं छोड़ता, उसी प्रकार साधुसन्त भी अपनी मर्यादा नहीं छोड़ते| संयम का पालन करना ही उनकी मर्यादा है| Continue reading “चार संयम” »

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सुव्रत की सद्गति

सुव्रत की सद्गति

भिक्खाए वा गिहत्थे वा,
सुव्वह गम्मई दिवं

चाहे भिक्षुक हो, चाहे गृहस्थ; जो सुव्रत है, वह स्वर्ग पाता है

यह आवश्यक नहीं है कि जो गृहस्थ है, वह सद्गति न पाये अथवा जो गृहत्यागी है, वह सद्गति अवश्य पाये| Continue reading “सुव्रत की सद्गति” »

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