धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति
सद्गृहस्थ धर्मानुकूल ही आजीविका करते हैं
सद्गृहस्थ धर्मानुकूल ही आजीविका करते हैं
निरर्थक शिक्षा छोड़कर सार्थक शिक्षा ही ग्रहण करें
राग-द्वेष के क्षय से जीव एकान्तसुखस्वरूप मोक्ष को प्राप्त करता है
मनोज्ञ शब्दादि राग के और अमनोज्ञ द्वेष के कारण कहे गये हैं
कोमल प्रशंसात्मक शब्द हमें अच्छे लगते हैं और कठोर निन्दात्मक शब्द बुरे| Continue reading “राग द्वेष के कारण” »
सद्गुण-साधना का कार्य भुजाओं से समुद्र तैरने के समान है
धर्म के साधनों का विज्ञान से समन्वय करना चाहिये
जिस श्रद्धा के साथ निष्क्रमण किया है, उसी श्रद्धा के साथ विस्त्रोतसिका (शंका) छोड़कर उसका अनुपालन करना चाहिये
ब्रह्मचर्य तपों में उत्तम है
मनसंयम, वचनसंयम, शरीरसंयम और उपकरणसंयम – ये संयम के चार प्रकार हैं
चाहे भिक्षुक हो, चाहे गृहस्थ; जो सुव्रत है, वह स्वर्ग पाता है