बुद्धिमान ज्ञान पा कर नम्र हो जाता है
बुद्धिमान में नम्रता
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मरीचि का अहंकार और उत्सूत्र
ऋषभदेव भगवान के पास भरत चक्रवर्ती के पुत्र मरीचि ने दीक्षा ग्रहण की| बाद में दुःख सहन करने में कमजोर बनने से उसने त्रिदंडिक वेश धारण किया| इस प्रकार वह चारित्र का त्याग करके देशविरति का पालन करने लगा| अल्प जल से स्नान करना, विलेपन करना, खड़ाऊँ पहनना, छत्र रखना वगैरह क्रिया करने लगा| एक बार भरत महाराजा ने समवसरण में भगवान ऋषभदेव से पूछा- हे प्रभु ! आज कोई ऐसा जीव है, जो भविष्य में तीर्थंकर बनेगा? तब भगवान ने कहा कि ‘‘हे भरत ! तेरा पुत्र मरीचि इस भरत क्षेत्र में प्रथम वासुदेव, महाविदेह में चक्रवर्ती और भरत क्षेत्र में अंतिम तीर्थंकर बनेगा|’’ Continue reading “मरीचि का अहंकार और उत्सूत्र” »
त्यागी कौन नहीं ?
जो पराधीन होने से भोग नहीं कर पाते, उन्हें त्यागी नहीं कहा जा सकता
त्रास मत दो
किसी भी अन्य जीव को त्रास मत दो
जीव विचार – गाथा 8
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प्राणवध कैसा है?
निग्धिणो, निसंसो, महब्भभओ
प्राणवध चण्ड है, रौद्र है, क्षुद्र है, अनार्य है, करुणारहित है, क्रूर है, भयंकर है
मैं अकेला हूँ
न वाऽहमवि कस्स वि
मैं अकेला हूँ – मेरा कोई नहीं है और मैं भी किसी का नहीं हूँ
मैं अन्य हूँ
कामभोग अन्य हैं, मैं अन्य हूँ
64 कला
1. ध्यान, प्राणायाम, आसन आदि की विधि
2. हाथी, घोड़ा, रथ आदि चलाना
3. मिट्टी और कांच के बर्तनों को साफ रखना
4. लकड़ी के सामान पर रंग-रोगन सफाई करना
5. धातु के बर्तनों को साफ करना और उन पर पालिश करना
6. चित्र बनाना
7. तालाब, बावड़ी, कमान आदि बनाना Continue reading “64 कला” »